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अनुमान प्रमाण
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पर 'नित्यः शब्दोऽनित्यधर्मानुपलब्धेः आकाशवत् ,' 'अनित्यः शब्दो नित्यधर्मानुपलब्धेर्घटवत्' यह प्रकरणसम हेत्वाभास भी अनुपपन्न है, क्योंकि शब्दरूपी धर्मी द्रव्यात्मक नहीं हो सकता और प्रकरण सम भी विरुद्धाव्यभिचारी की तरह द्रव्यात्मकता बतला रहा है, तथापि जैसे प्रकरणसम हेत्वाभास उस प्रमाता के प्रति है, जो कि शब्द में कृतकत्वादि विशेष धर्म के अपरिज्ञान से शब्द में अनित्यत्वरूप धर्म का निश्चय करने में असमर्थ है उमी प्रकार विरुद्धाव्यभिचारी भी उसी पुरुषविशेष के प्रति है तो आकाश में आत्मा की तरह व्यापकत्वरूप धर्मविशेष के अज्ञान से उसमें नित्यत्वसाधन करने में असमर्थ है । अतः विरुद्धाव्यभिचारी को हेत्वाभासता अक्षुण्ण है। किन्तु वह एक तरह से प्रकरणसम का ही नामान्तर है, इसीलिये जयन्त भट्टने 'यद्येवंविधस्य प्रकरणसमस्य विरुधाव्यभिचारीति नाम क्रियते तदपि भवतु इति 1 इस उक्ति के द्वारा विरुद्धाव्यभिचारी को प्रकरणसम का ही नामान्तर बतलाया है। प्रकरणसम में एक ही हेतु होता है और विरुद्धाव्यभिचारी में दो विरुद्ध हेतु होते हैं, या भेद भी अकिंचित्कर है, क्योंकि भासर्वज्ञोक्त प्रकरणसम के उदाहरण में समान हेतु के होने पर भी नित्यः शब्दः अनित्यधर्मानुपलब्धेः आकाशवत्', 'अनित्यः शब्दो नित्यधर्मानुपलब्धेर्घटवत्' इस उपर्युक्त प्रकरणसम के उदाहरण में दो ही हेतु हैं, न कि एक । ऐसा मानने पर 'एकत्र तुल्यलक्षणविरुद्भहेतुद्वयोपनिपाता विरुद्धव्यभिचारीत्येके इस पाठ का यही आशय मानना होगा कि कतिपय विद्वान् प्रकरणसम को ही विरुद्वाव्यभिचारी मानते हैं । यदि इसको प्रकरणसम से भिन्न माना जायेगा, तो हेत्वाभास की षडूविधता का भंग होगा । अतः भासर्वज्ञ को विरुद्धाव्यभिचारी की हेत्वाभासता अभीष्ट होते हुए भी उसका प्रकरणसम से पार्थक्य अभिप्रेत नहीं है।
उदाहरण अनुमानवाक्य के पांच अवयवों में उदाहरण का विशिष्ट स्थान है। न्यायभाष्यकार ने उदाहरण की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए कहा है-'असत्युदाहरणे केन साधर्म्य वैधर्म्य वा साध्यसाधनमुपादीयेत? कस्य वा साधर्म्यवशादुपसंहारः प्रवर्तेत?" अर्थात् उदाहरण के न होने पर किस के साथ साध्यसाधक साधर्म्य अथवा वैधर्म्य का उपादान किया जायेगा ? किसके साधर्म्य से पक्ष में उपनय तथा निगमन द्वारा हेतु और साध्य का उपसंहार होगा ? न्यायसूत्रकार महर्षि गौतम ने उदाहरण का लक्षण किया है-“साध्यसाधात्तद्धर्मभावी दृष्टान्त उदाहरणम' 'उदाहियतेऽनेनेति उदाहरणम्' 1. न्यायमंजरी, उत्तर भाग पृ १६०. 2. न्यायसार, पृ. १२ 3. न्यायभाष्य, १/१/३९ 4. न्यायसूत्र, १/१/३६
भान्या-१७
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