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अनुमान प्रमाण
१०५ भासर्वज्ञाचार्य के परवर्ती जैनतार्किक प्रभाचन्द्र ने असिद्ध हेत्वाभास के भासर्वज्ञसम्मत विशेष्यासिद्ध, विशेषणासिद्ध, आश्रयासिद्ध, आश्रयैकदेशासिद्ध, व्यर्थविशेषणासिद्ध, व्यधिकरणासिद्ध तथा भागासिद्ध, नामक भेदों का माणिक्यनन्दी द्वारा सूत्रित असत्सत्ताक नामक असिद्ध भेद में1 तथा सन्दिग्धविशेष्यासिद्ध आदि का अविद्यमानतिश्चय नामक असिद्धभेद में अन्तर्भाव किया है। आचार्य हेमचन्द्र ने असिद्ध के स्वरूपासिद्ध तथा सन्दिग्धासिद्ध ये दो भेद मानकर भासर्वज्ञसम्मत विशेष गसिद्ध आदि-असिद्धभेदों का वाद्यसिद्ध, प्रतिवाद्यसिद्ध तथा उभयासिद्ध इन असिद्धप्रभेदों में अन्तर्भाव किया है ।
विरुद्ध हेत्वाभास सूत्रकार ने विरुद्ध हेत्वाभास का लक्षण 'सिद्वान्तमभ्युपेत्य तद्धिरोधी विरुद्धःयह किया है अर्थात अभ्युपेत (स्वीकृत) सिद्धान्त के विरोधी हेतु को विरुद्ध हेत्वाभास कहते हैं । भाष्यकार ने इसका उदाहरण देते हुए कहा है-'सोऽयं विकारो व्यक्तेरपैत, नित्यत्वप्रतिषेधात् । यहां हेतु 'नित्यत्वप्रतिषेध' महदादिविकार धर्मलक्षणादिरूपान्तर में परिवर्तित होते हुए भी सन् होते हैं, क्योंकि उनका सर्वथा विनाश नहीं होता, इस सांख्य-सिद्धान्त का विरोधी होने से विरुद्ध है । तात्पर्य यह है कि सांख्य विकारों को रूपान्तर में परिणामशील मानते हुए भी उन्हें सत् अर्थात् विनाशरहित मानता है और विनाशराहित्यरूप सत्त्व ही नित्यत्व है, किन्तु 'विकारोव्यक्तेश्येति नित्यत्वप्रतिषेधात्' इस अनुमान में नित्यत्वप्रतिषेधरूप हेतु विकारों को अनित्य अर्थात विनाशी बतलाता हआ उपयुक्त स्वीकत सांस्य-सिद्धान्त का विरोधी है, अतः यह हेतु विरुद्ध हेत्वाभास है । प्रतिज्ञाविरोध नामक निग्रहस्थान और विरुद्ध हेत्वाभास का पार्थक्य बतलाने के लिये वार्तिककार ने विरुद्ध हेत्वाभास का एक और स्फुट उदाहरण दिया है -'नित्यः शब्दः उत्पत्तिधर्मकत्वात्। यहां उत्पत्तिधर्मकत्व हेतु नित्यत्व के साथ व्याप्त न होकर तद्विपरीत अनित्यत्व से व्याप्त है, क्योंकि उत्पत्तिशील वस्तु अनित्य होती है न कि नित्य । इस प्रकार उत्पत्तिधर्मकत्व हेतु स्वीकृत सिद्धान्त शब्द के नित्यत्व का विरोधी है, अतः विरुद्ध हेत्वाभास है। 1 ये च विशेष्यासिद्धादयोऽसिद्धप्रकारा: परिष्टास्ततेऽसत सत्ताकत्वलक्षणासिद्धप्रकारान्नार्थान्तरम्, ___ तल्लक्षणभेदाभावात -प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृष्ठ ६३२-६३३. 2 सन्दिग्धविशेष्यादयोप्य विद्यमान निश्चयतालक्षणातिकमाभावानार्थान्तरम् ।-प्रमेयकमलमाण्ड,
3. विशेष्यासिद्वादीनामेष्वेवान्तर्भावः ।-प्रमाणमीमांसा, २/१९
एवेव' वादिप्रतिवाशुभयासिद्धेवेव ।-स्वोपज्ञवृत्ति, २/१९ 4. न्यायसूत्र, १।२१६ 5. न्यायभाष्य, १।२६ 6. न्यायवार्तिक, ११२१६
भान्या-१४
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