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अनुमान प्रमाण
भासर्वज्ञ ने विरुद्ध के आठ भेद किये हैं। ये भेद सपक्ष की विद्यमानता और अविद्यमानता पर आधारित हैं ।1 सर्वप्रथम सपक्ष की विद्यमानता पर आधारित भेदों का निरूपण किया जा रहा है :१. पक्षविपक्षव्यापक :
उदाहरण है-'शब्दो नित्यः कार्यत्वात् । यहां कार्यत्र हेतु पक्ष शब्द और विपक्ष घटादि में विद्यमान है, किन्तु सपक्ष आत्मादि में कार्यत्व हेतु की सत्ता नहीं है, कयोंकि आत्मादि कार्य नहीं है।
कार्यन्त्र हेतु के स्वरूप पर इसकी हेत्वाभासता की विधा निर्भर करती है । कार्यत्व पर विचार करते हुए भासर्वज्ञ ने कार्यत्वका का लक्षण 'स्वकारणसमवायः'' बतलाया है । इस प्रसंग में भासर्वज्ञ ने उद्योतकर तथा वाचस्पतिमिश्र-सम्मत अनित्यत्व के लक्षण की चर्चा की है । तात्पर्य यह है कि यहां कार्यत्व का अर्थ जन्यत्वमात्र मानने पर नित्यत्वाभाववान् विपक्ष प्रध्वंसाभाव में जन्यत्व की सत्ता से यह हेतु अनैकान्तिक हो जाता है । कार्यत्व का अर्थ 'स्वकारणे समवायः' मानने पर विनाशी होने से अनित्य प्रागभावरूप विपक्ष में स्वसमवायिकारण-समवेतत्व का अभाव होने से उसमें कार्यत्व हेतु की वृत्ति न होने से विपक्षव्यापकत्वरूप विरुद्धत्व का अभाव होगा और यह विरुद्ध हेत्वाभास नहीं कहा जायेगा । अतः भूषणकार ने कार्यत्व के
लक्षणों का परित्याग कर उद्योतकर तथा वाचस्पतिमिश्रसम्मत उभयान्तोपलक्षित सत्ता को अनित्यत्व का लक्षण माना है अर्थात् जो प्रागभाव तथा प्रध्वंस दोनों का प्रतियोगी हो, जिसका प्रागभाव व ध्वंस दोनों हो, वह अनित्य कहलाता है । प्रागभाव में प्रागभावप्रतियोगित्व नहीं हैं अर्थात् प्रागभाव का प्रागभाव नहीं होता । अतः वह नित्य है, अतः उसमें कार्यत्व हेतु की सत्ता न होने पर भी हेतु में विपक्ष. व्यापकत्र की अनुपपत्ति नहीं है और प्रध्वंस में प्रागभावप्रतियोगिव होने पर भी ध्वंसप्रतियोगित्व नहीं है, अतः वह भी अनित्य है, किन्तु नित्य है । अतः उसमें कार्यत्व हेतु के रहने पर भी साध्याभाववद्वृत्तित्वरूप अनैकान्तिकता दोष नहीं है । २. विपक्षकदेशवृत्ति पक्ष व्यापक :
__ यथा-'शब्दो नित्यः सामान्यत्वे सति अस्मदादिबाह्यन्द्रियग्राह्यत्वात् । अर्थात् शब्द नित्य है, क्योंकि सामान्यवान होता हुआ अस्मदादि की बाह्येन्द्रिय से ग्राह्य है । द्वथणुक पृथिव्यादि तथा अन्तःकरणग्राह्य सुखादिरूप विपक्ष में ‘सामान्यवत्वे सति अहमदादिबाह्येन्द्रियग्राह्मत्व' हेतु के न रहने से यह हेतु विपक्ष व्यापक नहीं, अपितु विपक्षकदेशवृत्ति है।
1. विरुद्धभेदास्तु सपक्षे सत्यसति च भवन्ति ।-न्यायतात्पर्यदीपिका, पृ. ११९ 2. न्यायभूषण, पृ. ३१३ 3. उभयान्तोपलक्षिता सत्तानित्यत्वमित्ये के 1--न्यायभूषण, पृ. ३१३
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