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अनुमान प्रमाण
प्रतिज्ञा - निरूपण
पंचावयववाक्य परोपदेश है । अभीष्ट अर्थ का प्रतिपादक पदसमूह यहाँ परोपदेश के रूप में विवक्षित है । उन पदसमूहात्मक वाक्य के एकदेशभूत पद अवयवत्वेन अभीष्ट नहीं हैं, अपितु प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय तथा निगमनरूप परसमूह यहाँ अत्रयवत्वे । अभिप्रत हैं । हस्तपादादि अवयवों में अतिव्याप्ति का निवारण करने हेतु अवयत्रों के पहिले 'प्रतिज्ञादि' का प्रयोग किया है । यद्यपि साधनांग के अभिवावक प्रतिज्ञादि पदकदम्बात्मक होने से अवान्तर वाक्य हैं, तथापि पंचावयव महावाक्य की अपेक्षा से अवयव कहलाते हैं ।
पंचावयय महावाक्य में प्रतिज्ञा प्रथम अत्रयत्र है | आचार्य भासर्वज्ञ ने 'प्रतिपिपादयिषया पक्षवचनं प्रतिज्ञा" यह प्रतिज्ञा का लक्षण किया है । यद्यपि जिज्ञासु व्यक्ति भी साधन की जिज्ञासा से पक्षवचन का उच्चारण करता है, तथापि उसमें 'प्रतिपिपादयिषा' का अभाव होने के कारण प्रतिज्ञालक्षण की अतिव्याप्ति नहीं हो सकनी । ' धातूनामनेकार्थत्वात्' इस नियम के अनुसार ' प्रतिपिपादयिषा ' का यहां अर्थ 'सिसाधयिषा' अभिप्रेत है । ऐसा न करने पर हेत्वादि में भी प्रतिज्ञात्र की आपत्ति हो जायेगी, क्योंकि उनका कथन भी प्रतिपिपादयिषापूर्वक होता है । 'साध्यनिर्देशः प्रतिज्ञा' इस सूत्र में भी साध्यनिर्देश के विशेषण रूप से 'प्रतिपिपादयिषा' पद की आवश्यकता है । अन्यथा 'अनित्यः शब्दः चाक्षुषत्वात्', 'नित्यः शब्दः अस्पर्शवत्त्वात् बुद्धिवत्' इन अनुमानों में क्रमशः चाक्षुषत्व हेतु यथा बुद्धिरूप दृष्टान्त असिद्ध हैं और असिद्ध होने से साध्य हैं तथा उनका उपर्युक्त अनुमानों में निर्देश भी है । अतः इनमें भी साध्यनिर्देशः प्रतिज्ञा ' इस लक्षण को अतिव्याप्ति हो जायेगी । 'प्रतिपिपादयिषा' यह विशेषण देने पर उनमें अतिव्याप्ति नहीं है, क्योंकि असिद्धत्वेन उनके साध्य होने पर भी किसी साधन के द्वारा उनकी सिद्धि नहीं की जा रही है, अतः 'प्रपि दयिषा' से साध्य का निर्देश वहाँ नहीं है । श्री वी. पी. वैद्य ने यह निर्देश किया है कि प्रतिज्ञा को गौतमोक्त परिभाषा 'साध्यनिर्देशः प्रतिज्ञा' अत्यन्त संक्षिप्त है और पक्षे प्रतिपिपादयिषा' पद के बिना अस्पष्ट है । " वस्तुतः सूत्रकार पर यह दोषारोपण उचित नहीं, क्योंकि संक्षिप्त होना सूत्र का दूषण न होकर भूषण है । तथा प्रतिज्ञादि पंचावयत्रवाक्य समूहरूप परार्थानुमान में साध्यनिर्देश पक्ष में उसकी प्रतिपिपादयिषा के लिये होता है, अतः साध्य शब्द से ही पक्षाश्रित प्रतिपिपादयिषा द्योतित हो जाती है ।
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'साध्यनिर्देशः प्रतिज्ञा' - इस सूत्रकारोक्त प्रतिज्ञालक्षण में 'सर्व' वाक्यं सावधारणं भवति' इस न्याय के अनुसार 'साध्यनिर्देश एव प्रतिज्ञा' इत्याकारक अवधारण मानमे पर यत एवकारस्ततोऽन्यत्र नियमः ' इस न्याय के अनुसार प्रतिज्ञा का नियमन होगा
1. न्यायसार, पृ. ५
2. न्यायसार, नोट्स, पृ. १६
भान्या - १२
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