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इसके अतिरिक अनेक कारण भारतमें दुर्भिक्षके हैं। जिन्हें यदि चाहे तो भारत-सरकार एक दिनमें हटा सकती है। जैसे--मादक द्रव्योंका व्यापार लगानकी कठोरता, भिक्षुकोंकी भयंकर वृद्धि और विदेशोंका व्यापार, इत्यादि। .. (१) मादक द्रव्योंको महँगा करके उन्हें कान्टेक्ट पर चलाना उसके रोकनेका उपाय नहीं है, बल्कि अपना खजाना भरनेका एक उपाय है । इसको कतई रोक कर इसके लिये कड़ा कानून बनाना चाहिए ।
(२) लगानकी कठोरताको कम करना चाहिए । भारतके निर्धन कृषको पर केवल नाम मात्रका ही लगान होना चाहिए । जहाँ कहीं, जब कभी किसानोंके साथ झगड़ा हुआ या उन पर अन्याय किया, तो उसका मूल कारण लगानकी अधिकता ही पाया गया। जिसे वह दरिद्र कृषक देने में असमर्थ था।
(३) भिक्षकों के लिये कोई कानन अवश्य बनना चाहिए । इस कामक देशकी म्युनिसिपल्टिया और टाउन कमेटियाँ मजे में कर सकती हैं । अर्थात् भिक्षुकोंको उक्त संस्थाएँ प्रमाणपत्र दें कि वे भिक्षाके योग्य हैं या नहीं । बिना प्रमाणपत्र प्राप्त किये मांगते हुए भिक्षुकोंको पकड़ कर दण्ड देना चाहिए । यद्यपि दान धर्मका एक अंग माना गया है तथापि ऐसे घर घरा भीख माँग कर खानेवाले मुफ्तखोर काहिलों के लिये ऐसा नियम बनाने में कुछ हर्ज नहीं।
(४) विदेशी मालको भारतमें पचाने के लिये सरकार अपना बल प्रयोग न करे । भारतीय वस्तुओं पर अधिक टेक्स और विदेशी वस्तुओं पर नाम मात्रका टेक्स लगा कर अपने अन्यायका परिचय न दे । एक दूसरे देशका आपसमें व्यापारिक सम्बन्ध होना कुछ अनुचित नहीं है, परन्तु होना चाहिए समानता और न्याय । जितना पक्का माल भारतमें विदेशोंसे आता है उसके सामने देशसे कुछ भी पक्का माल विदेशोंको नहीं जाता । यदि जाता है तो कच्चा माल, वह भी अधिक नहीं । सन् १९१३-१४, में भातरमें आये विदेशी मालकी सूची आपके अवलोकनार्थ यहाँ लिख दी जाती है।
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