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भारत का भविष्य
गांव में एक फकीर था। सम्राट जब भी मुसीबत में पड़ता था, उस फकीर के पास गया था। अपने सेनापति को लेकर फिर गया। उस फकीर ने कहा कि पहला काम तो यह करें कि इस सेनापति को छुट्टी कर दें और दूसरा काम यह करें कि इसे तत्काल कारागृह में डाल दें जब तक युद्ध समाप्त न हो जाए। यह आदमी खतरनाक है। जब कोई सेनापति कहता है हार निश्चित है, तो हार निश्चित हो जाती है। इसे बंद कर दें, यह खतरनाक है । अगर सैनिकों तक यह खबर पहुंच गई कि हार निश्चित है, तो फिर हार को बदलना बहुत मुश्किल हो जाएगा। लेकिन सम्राट ने कहा, इसे मैं बंद कर दूं तो युद्ध का क्या होगा? तो उस फकीर ने कहा, मैं सैनिकों को कल सुबह युद्ध पर लेकर चला जाऊंगा। सम्राट डरा तो बहुत । अनुभवी सेनापति कह रहा था, हार निश्चित है । और फकीर तो तलवार पकड़ना भी नहीं जानता था । यह खतरा है, लेकिन कोई उपाय न था । फकीर के हाथ में फौजें दे देनी पड़ीं। वह फकीर सुबह गीत गाता घोड़े पर सवार होकर फौजों को ले चला। एक-एक आदमी की श्वास, सैनिकों के प्राण डरे हुए। फकीर के साथ मौत निश्चित है, लेकिन कोई उपाय नहीं।
दुश्मन की सीमा जहां थी, नदी के इस पार एक मंदिर के पास वह फकीर रुका और उसने कहा कि मैं युद्ध में जाऊंगा बाद में, जरा इस मंदिर के देवता से पूछ लूं कि जीत होगी या हार? अक्सर पूछ लेता हूं और देवता जो कह देता है वही होता है। उन सैनिकों ने कहा, हमें कैसे पता चलेगा कि देवता क्या कह रहा है? उस फकीर ने कहा, तुम्हारे सामने ही पूछूंगा। सामने ही उसने खीसे से एक सोने का चमकता हुआ रुपया निकाला, आकाश की तरफ फेंका और कहा कि हे मंदिर के देवता, अगर हम जीतते हों तो रुपया सीधा गिरे और अगर हारते हों तो उलटा गिरे। उलटा गिरा हम वापस लौट जाएंगे, सीधा गिरा तब जीत कर ही लौटना है। रुपया सीधा गिरा! सैनिकों की श्वासें रुक गई [] ! देखा, रुपया सीधा था। फकीर ने कहा, अब फिक्र छोड़ दो। अब युद्ध में जाओ और जीत कर लौटो । वे युद्ध में कूद पड़े। आठ दिन बाद वे जीत कर वापस लौटते थे उसी मंदिर के पास से, सैनिकों ने फकीर को याद दिलाया, मंदिर के देवता को धन्यवाद तो दे दें। उस फकीर ने कहा, छोड़ो, इसमें मंदिर के देवता का कोई हाथ नहीं! उन्होंने कहा, कैसी आप बात करते हैं ! मंदिर के देवता से पूछ कर ही हम गए थे। भूल गए आप। उस फकीर ने कहा, अब तुम पूछते हो तो मैं तुम्हें सच बात बता दूं। रुपया निकाल कर उनके हाथ में दे दिया। वह रुपया दोनों तरफ सीधा था । उसमें कोई उलटा पहलू न था । हमारा मन क्या पकड़ लेता है, वे परिणाम हो जाते हैं। हमारा मन हमारा भविष्य, हमारा मन हमारा जीवन । इस देश का मन सदा से यह पकड़े हुए है कि आगे अंधेरा है, आगे पतन है, आगे बुराई है, आगे विनाश है। यह बड़ी खतरनाक दृष्टि है। इससे खतरनाक और कोई दृष्टि नहीं हो सकती। इसलिए हम पांच हजार साल से पतन कर रहे हैं।
उस फकीर के सिक्के में दोनों तरफ सीधा था । हमने जो सिक्का लिया है वह दोनों तरफ उलटा है। उसे कैसा भी फेंको वह उलटा ही गिरने वाला है। हमने हार अपने हाथ से तय कर रखी है। हमने गुलामी अपने हाथ से तय कर रखी है। हमने दरिद्रता, दीनता, दुख अपने हाथ से तय कर रखा है। हम जिम्मेवार हैं। हमारे अतिरिक्त और कोई जिम्मेवार नहीं हैं।
लेकिन यह जिम्मेवारी हमारी फिलासफी में है, हमारे सोचने के ढंग में है, हमारे देखने के ढंग में है । हमारी जिंदगी का जो रवैया है वह रवैया हारने वाले का है, जीतने वाले का नहीं है। इस रवैये में पहली बात है कि
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