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भगवती सूत्रे
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स्वनितकुमार भवनवासिदेवेभ्य उत्पद्यन्ते, 'असुरकुमारेण भंते ! असुरकुमारःखल भदन्त ! 'जे भनिए पृढवीकाइएस उववज्जित्तए' यो भव्यः पृथिवी - कायिकेपूत्यत्तम् योऽसुरकुमारः पृथिवीकायिके पूत्पत्ति योग्यो विद्यते इत्यर्थः । 'से भंते' स खलु भदन्त ! ' के वइयकाल डिएस उववज्जेज्जा' कियत्कालस्थि विकेत्पद्यत इति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम! 'जहन्ने] अंतोडिएस' जघन्येन अन्तर्मुहू स्थिति केषु पृथिवीकायिकेपूत्पचन्ते, 'उक्को सेणं बावीसवास सहसएिस' उबवज्जेज्जा' उत्कर्पेण द्वाविंशतिवर्षसहस्रस्थितिकेषु पृथिवीकायिकेषु भवनवासि देवान्यतमासुरकुमारभवनवासिदेवस्य सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, दीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, वायुकुमार इन भवनवासि देवोंके भेदों का ग्रहण हुआ है। इससे तात्पर्य यह है कि असुरकुमार नागकुमार सुवर्णकुमार विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार उदधिकुमार, दिक्कुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार इन भवनवासी के भेदों में से आकरके जीव पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होते हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'असुरकुमारे णं भंते! जे भविए पुढवीकाइएस जववज्जित्तए' हे भदन्त ! जो असुरकुमार पृथिवीकाधिकों में उत्पन्न होने के योग्य हैं !से णं भंते! केवहयकालडिह पसु उववज्जेज्जा' वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकाfusो में उत्पन्न होता है ? इराके उसर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ?' हे गौनमा 'जहन्नेणं अंतोमुतए लक्को सेणं बावीसवास सहसडिएस' वह जघन्य से अन्तर्मुह की स्थिति वाले पृथिवीकायिकों में गौर उत्कृष्ट से २२ हजार वर्ष की स्थितिवाले पृथिवी कायिकों में उत्पन्न होता है, अघ गौतम पुनः प्रभु से ऐपूछते हैं
કહેવાનુ તાત્પર્ય એ છે કે નાગકુમ ૨ સુવર્ણ કુમાર વિદ્યુત્ક્રુ ૨, અગ્નિકુમાર, દ્વીપકુમાર, ઉદધિકુમાર, દિશાકુમાર, વાયુકુમાર અને તનિત કુ"ાર આ લવનવાસીચેના સેઢામાંથી આવીને પૃથ્વીકાયક જીવેામાં ઉત્પન્ન થાય છે. હવે गीतभस्वाभी प्रलुने मे पूछे छे है--'असुरकुमारे णं भंते ! जे म वि पुढवीकाहपसु उववजित्तए' से लगवन् ने असुरकुमार पृथ्विमयि वामां उत्पन्न थवाने थेग्य छे 'से णं भंते ! केवइयकालट्ठिइएस उववज्जेज्जा' तेडेंटला अजनी સ્થિતિવાળા પૃથ્વીકાયિકામાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે छें है- 'गोयमा !' हे गौतम! 'जहन्नेणं अतोमुहुत्तट्ठिइए उक्के सेण बावीसवाससहस्सट्टिइएस' ते धन्यथी तर्तनी स्थितिवाणा पृथ्विमाथि लाभां અને ઉત્કૃષ્ટથી ખાવીસ હજાર વર્ષની સ્થિતિવાળા પૃથ્વીકાયિકામાં ઉત્ત્પન્ન