Book Title: Bhagwati Sutra Part 15
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 908
________________ भगवती सूत्रे ८९० तिष्यसिए' पश्चमदेशिको यथा त्रिदेशिकः त्रिपदेशिकवत् नो सार्द्धः किन्तु अनर्द्ध एव भवतीति । 'छप्पएसिए जहा दुप्पएसिए' 'पद्मदेशिक : द्विपदेशिकवत् सा न तु अनद्धः पट्पदेशिक इति । 'सचपएसिए जहा तिप्पएसिए' सप्तपदेशिको यथा त्रिदेशिकः नो सार्द्ध: किन्तु अर्द्ध इति । 'अट्ठपएसिए जहा दुप्प एसए' अष्टप्रदेशिको यथा द्विमदेशिकः । 'णवपरसिए जहा तिप्पएसिए' नव प्रदेशिको यथा त्रिप्रदेशिकः । 'दसपएसिए जहा' दुप्पएसिए' दशपदेशिको यथा द्विपदेशिकः । 'संखेज्जपए सिए णं भंते ! पुच्छा' संख्येयप्रदेशिकः खलु भदन्त ! होता है | 'पंचप एसिए जहा तिप्पएसिए' त्रिप्रदेशी स्कन्ध के जैसा पञ्च'प्रदेशी स्कन्ध सार्द्ध नहीं होता है किन्तु अनद्ध होता है । 'छपएसिए जहा दुप्पएसिए' षट्प्रदेशिक स्कन्ध विदेशी स्कन्ध के जैसा सार्द्ध होता है नई नहीं होना है । 'सत्तपएसिए जहा तिप्पएसिए' सप्त प्रदेशी व त्रिप्रदेशिक स्वन्व के जैसा होता है-अर्थात् अनर्द्ध होता है सार्द्ध नहीं होता है । 'अट्ठपए सिए जहा दुप्पएसिए' आठ प्रदेशों वाला स्कन्ध द्विपदेशी स्कन्ध के जैसा सार्द्ध होता है अर्द्ध नहीं होता है 'द एसिए जहा तिप्पएसिए' नौ प्रदेशों वाला स्कन्ध त्रिप्रदेशिक स्कन्ध के जैसा अनद्ध होता है साई नहीं होता । 'दसपएसिए 'जहा दुप्पएसिए' दश प्रदेशोंवाला स्कन्ध द्विप्रदेशी स्कन्ध के जैसा सार्द्ध होता है अर्द्ध नहीं होता है । सहित होय हे मनर्ध- अर्ध लाग विनाने होतो नथी. 'पंचप एसिए जहा तिप्पएसिए' प्रदेशवाणा उधना स्थल प्रमाणे पांय प्रदेशोवाणी २ॐध સા-અર્ધો ભાગ સહિત હાતા નથી. પરંતુ અન-અર્ધો ભાગ વિનાના होय छे. 'छप्परसिए जहा दुप्पएसिए' छ प्रदेश वाणी २९६ मे प्रदेशावाजा २४'धना उथन प्रभाये सार्धं - अर्धा लागवाणी होय छे. अनध - अर्धा भागविनाना होता नथी, 'सत्तपए सिए जहा तिप्पएसिए' सत प्रदेशोवाणी १४६ ત્રણ પ્રદેશવાળા સ્કંધના કથન પ્રમાણે અન હોય છે. સા મધ્યભાગવાળા होतो नथी, 'अट्टएखिए जहा दुप्परसिए' मा प्रदेशोवाणी सुध मे अहेश वाणा उधना उथन प्रमाणे साध - अर्धा लागवाणी होय' छे, अनर्थ - अर्धालाग विनानी होती नथी. 'णवपएसिए 'जहा दुप्पएसिए' नत्र अहेशोवाणी સ્કંધ ત્રણ પ્રદેશેાવાળા સ્કંધના કથન પ્રમાણે અન-અ`ભાગ વિનાના હાય छे, सार्ध- अर्धा लागवाणी होतो नथी, 'दसपएसिए जहा दुप्पएसिए' स પ્રદેશેાવાળા સ્કધ એ પ્રદેશેાવાળા સ્કંધના કથન પ્રમાણે સા-અર્ધોભાગ્ સહિત હાય છે. અન–માંભાગ વિનાના હાતા નથી, L है

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