Book Title: Bhagwati Sutra Part 15
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 933
________________ प्रमेयोन्द्रका टीका श०२५ उ.४ २०१३ सैनिरेजपुद्गलानामरूपबहुत्वम् ९१५ शे गम्-उक्तादन्यत् सर्वं तदेव-द्रव्यार्थतापक्षोक्त मेव ज्ञातव्यमिति । 'दयट्ठपएसटयाए' द्रव्यार्थपदेशार्थ तया, उभयार्थतापक्षे इत्यर्थः, 'सबत्योवा अणंतपएसिया खंधा निरेया दव्यद्वयाए' सर्वस्तोकाः सर्वापेक्षया अल्पाः अनन्तप्रदेशिकाः स्कन्धा द्रव्यार्थतया निरेजा भवन्तीति। ते चेव पएसद्वयाए अणंतगुणा' अनन्तप्रदे. शिकाः स्कन्धा निरेना प्रदेशार्थत या स्तथैव अनन्तगुगा अधिका भवन्तीति सातव्या२, 'अशंतपएसिया खंधा सेया दबट्टयाए अणंतगुणा३' अनन्तमदेशिकाः स्कन्धाः सैजा द्रव्यार्थतपा अनन्तगुणा अधिका भवन्तीति३ । 'ते चेव पएसट्टयाए अर्णतगुणा४ ते एक मदेशार्थतया अनन्तगुणाः कथिता स्ते एव प्रदेशार्थतया ततो. ऽपि अनन्तगुणा अधिका भवन्तीति४ । 'परमाणुपोग्गला सेया दब?अपएसट्ठयाए गंतगुणा५' परमाणु युद्गलाः सैनाः द्रव्यार्थाऽप्रदेशार्थतया अनन्तगुणा अधिका भवन्ति५ । 'संखेज्जपएसिया खंधा सेया दट्टयाए असंखेजगुणाद' संख्येयहै। याकी का और सब कथन द्रव्यार्थपक्ष में जैसा कहा गया है वैसा ही यहां हैं । "दघट्टपएसट्टयाए सव्यत्योवा अणंतपएसिया खंधा निरेया व्वट्टयाए१ ते चेत्र पएसट्टयाए अणंतगुणा २” उभयार्थता पक्ष में द्रव्यरूप से सघ से अल्प अनन्तप्रदेशों वाले निष्कम्प स्कन्ध हैं १ और प्रदेशरूप से वे ही स्कन्ध अनन्तगुणें अधिक हैं २ । “अणंतपएसिया खंधा सेया दवट्ठयाए अर्णतगुणा३" अनन्तप्रदेशों वाले सकंप स्कन्ध द्रव्यरूप से अनन्तगुणे अधिक हैं ३ 'ते चेव पएसट्टयाए' और प्रदेशरूप से ये ही स्कन्ध 'अणनगुणा४' अनन्तगुणे अधिक हैं। 'परमाणुपोग्गला सेया दव्वअपएसयाए अणंतगुणा' ५ सकंप परमाणुपुदल द्रव्यरूप से एवं अप्रदेशरूप से अन्नगुणें अधिक हैं ५। "संखेज्जपएसिया खंधा થતા પક્ષમાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવ્યું છે. એ જ પ્રમાણે અહિંયાં પણ सभा “दबटुपएसट्टयाए सव्वत्थोवा अण'तपएसिया खंधा निरेया दव्वयाए तं घेव पएसट्टयाए अणंतगुणा" नया पयानो पक्षमा द्रव्यपाथी सौथी मय અનંત પ્રદેશેવાળા નિષ્કપ સ્કંધ છે ૧ અને પ્રદેશાર્થપણાથી એજ સ્કધ અનંત मा मधि छे २ 'अणतपएसिया खंघा सेया दव्वट्ठयाए अणतगुणा' मनत अहे. शापामा स५२४ा द्रव्यपथायी मन तग धारे छे. 3 अने ते चेव पए'सदृयाए' प्रदेशपाथी सन २४ थे। 'अणतगुणा' मन पधारे छ: ४ 'परमाणु पोगाला सेया दवा अपएसट्टयाए अणतगुणा ५' ५ ५२मा पुगतद्रव्य. • पाथी भने महेशपथी मन तग धारे छे. ५ "संखेज्जपएसिया

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