Book Title: Bhagwati Sutra Part 15
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 953
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०१४ परमापवादीनां सैजत्वादिकम् ९३५ पुद्गलानां कियन्तं कालमन्तर व्यवधानं भवतीति प्रश्नः । उत्तरमाह-'नत्थि अतरं' मास्ति अन्तरम् । 'दुप्पएसियाणं भंते ! खंधार्ण देसेयाणं केवइयं० द्विपदेशि कानां भदन्त ! स्कन्धानां- देशैजानाम्-देशतः कम्पनवतां कियन्तं कालमन्तर' इयवधानं भवति कम्पनक्रियाया इति प्रश्नः, उत्तरमाह-'नस्थि अंतरं' नास्ति अन्तरम् । 'सम्वेयाणं केवइयं कालं.' सबै जानां द्विपदेशिकाना कियन्तं काल मन्तरं भवतीति प्रश्नः, उत्तरमाइ-'नथि अंतरं नास्ति अन्तरम्-व्यवधानमिति। 'निरेयाणं केवइयं कालं.' निरेजानां द्विपदेशिकस्कन्धानां कियन्त कालमन्तर "निरयाण केवइय काल' हे भदन्त ! निष्कम्प परमाणु पुद्गलों का कितने काल का अन्तर होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-"नस्थि अंतरं' हे गौतम ! निष्कम्प परमाणु पुद्गलों का अन्तर नहीं होता है। ___"दुप्पएसियाणं भंते ! खंधोणं देसेयाण केवयं हे भदन्त ! हिप्रदेशिक स्कन्धों का जो एकदेश से सकंप होते हैं कितना अन्तर होता है? अर्थात देशतः सकम्प द्विप्रदेशिक स्कन्धों की कंपन क्रिया का अन्तर कितने काल का होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं'नस्थि अंतर' हे गौतम ! इनकी कम्पन क्रिया का अन्तर नहीं होता है। "सव्वेयाण केवइयं काल हे भदन्त ! सर्वाशतः सकंप द्विप्रदेशिक स्कन्धों की कपन क्रिया का अन्तर कितने काल का होता है? "नस्थि अंतर" हे गौतम ! सर्वा शतः सकंप द्विप्रदेशिक स्कन्धों की कम्पन क्रिया का अंतर नहीं होता है । 'निरेयाणं केवयं काल है भदन्त ! निष्कम्प द्विप्रदेशिक स्कन्धों की निष्कपन क्रिया का अन्तर "निरेयाण केवइय कालं.' 8 लगवन् नि० ५ ५२मा पुगवान सतर eatmनु य छ १ मा नना उत्तरमा प्रमुश्री ३ छे -"नत्थि अंतर' હે ગૌતમ! નિષ્કર્ષ પરમાણુ યુગલેનું અંતર હોતુ નથી. "दुप्पएसियाणं भवे खध'ण देसेयाणं केवइय०' है भगवन में प्रदेशाવાળા કંધોનું જે એકદેશથી સકપ હોય છે તેનું અંતર કેટલા કાળનું હોય છે? અર્થાત્ દેશતઃ સકંપ બે પ્રદેશવાળા સ્કંધની કંપન ક્રિયાનું “અંતર કેટલા કાળનું હોય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે नस्थि अंतर" गौतम! तेनी पन ध्यानु मतरतु नथी. 'सव्वेयाणं केवडय काल' सावन शित: स४५ मे प्रशावाणा २७ धानापन કિયાન અંતર કેટલા કાળનું હોય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે “नथि अंतर हे गीतम! सशित स५ मे प्रशाणा २४ धौनी अपन जियानु मत२ हातु नथी. 'निरेयाण केवइय' काल' हे लगपन नि०५

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