Book Title: Bhagwati Sutra Part 15
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 915
________________ अमेयचन्द्रिकारीका श०२५ उ.४ सू०१२ पुद्गलानां सकम्प-निष्कंपस्वनि० ८९७ सिए एवं यावदनन्तप्रदेशिका परमाणुपुद्गलवदेव जघन्यतः समयैकमात्रम्- उत्कृ शतावलिकाया असंख्येयभार्ग-यावत द्विप्रदेशिकादारभ्य अनन्तमदेशिकपर्यन्त: काधा सकम्पो भवतीति भावः । 'परमाणुपोग्गला गं भंते ! सेया कालो केव चिरं होति' परमाणुपुद्गला खल्ल भदन्त ! सजाः कालत कियच्चिरं भवन्तीति मानभगवानाह-गोयमा' हे गौतम ! 'सव्वद्धं' सर्वाद्धाम् सर्यकालं यावत् परमाणवः सकम्पाः भवन्ति.नास्ति तादृशः कश्चिदपि कालो यत्र कालत्रयेऽपि सर्वे एवं परमाणवः न चलन्तीत्यर्थः । 'परमाणुपोग्गला गं भंते ! निरेया कालओ केवच्चिरं होति' परमाणुपुद्गलाः खलु भदन्त ! कालतः कियच्चिरं कियत्कालपर्यन्तं निरेजा:-निष्कम्पा भवन्तीति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सन्चद्ध' सर्वाम् सर्वकालमेव परमाणवो निरेजा भवन्ति, 'एवं जाव अणंतपएसिए' इसी प्रकार यावत् द्विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशिक तकके स्कन्ध जघन्य से एक समय तक और उस्कृष्ट से आवलिका के असंख्यातवें भाग तक सकम्प होता है। '', 'परमाणुपोग्गला णं भंते ! सेया कालओ केवच्चिरं होति' हे भद न्त ! समस्त परमाणुपुद्गल की पृच्छा में कालकी अपेक्षा कितने काल तक सकम्प होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्रीने कहा है-'गोयमा' हे गौतम ! 'सब्बद्धं' सर्व काल तक सकम्प रहते हैं । ऐसा कोई भी काल नहीं है कि जिस कालत्रय में भी समस्त ही परमाणु न चलायमान रहते हों। 'परमाणुपोग्गलाण भंते ! निरेया कालओ केवच्चिरं होति' हे भदन्त ! समस्त परमाणुपुद्गल की पृच्छा में काल की अपेक्षा कितने काल तक अकम्प रहते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा हे गौतम ! 'सव्वद्धं समस्त काल में ही परमाणुपुद्गल अकम्प रहते हैं। લિકાના અસંખ્યાતમાં ભાગ સુધી સકમ્પ હોય છે. 'परमाणुपोग्गला गं भंते ! सेया कालओ केवच्चिर होति' र वन् સઘળી પરમાણુ યુગ કાળની અપેક્ષાથી કેટલા કાળ સુધી સકમ્પ હોય छ ? प्रश्नमा उत्तरमा प्रभुश्रीमे घुछ ४-'गोयमा गौतम ! 'सव्वद्ध' સર્વળ સુધી સકેમ્પ રહે છે, એ કેઈપણ કાળ નથી કે જે કાળવ્રયમાં પણ સઘળા પરમાણુ ચલાયમાન ન રહેતા હોય ફરીથી ગૌતમસ્વામી પ્રભુશ્રીને पूछे छे -'परमाणुपोगगले गं भंते ! निरेया काल ओ केवच्चिर होति' . વનું સઘળા પુદ્ગલ પરમાણુ કાળની અપેક્ષાથી કેટલા કાળ સુધી અકમ્પ રહે छ१ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गीतमस्वामीन ई छ -'गोयमा!' हे गौतम ! 'सव्वद्धं' सणामा ५२मा पड्गद ४५.२0 छे. 'एवं भ९ ११३

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