Book Title: Bhagwati Sutra Part 15
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 923
________________ therefront cant श०२५ उ. ४ सू०१२ पुतलानां सकम्पप-निष्क पत्वनि० ९०५ परिस्थानापेक्षया निरेजस्य तस्य जघन्येन एकं समयमन्तरं भवति उत्कृष्टतोड़तं कालमन्तरं भवतीतिभावः । ' परमाणुपोग्गला गं भंते । सेयाणं केवइयं कालं अंतरं होई' परमाणुपुद्गलानां खलु भदन्त ! सैजानां चलनक्रियया विशि sarai कियत्कालमन्तरं भवतीति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'नस्थि अंतरं' नास्ति अन्तरम् व्यवधानम् । सकम्पानां परमाणूनां लोके सर्वदैव विद्यमानत्वात् तद्विषये अन्तरं न भवतीति भावः । 'निरेमार्ग केवइयं कालं अंतरं होई' निरेजानाम् - कम्पनरहितानां परमाणूनां कियत्कालमन्तरम् - व्यवधानं भवतीति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे 1 जघन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से आवलिका के असंख्यात वे भाग रूप काल का है । यह अन्तर स्वस्थान की अपेक्षा से है । परस्थान .की अपेक्षा से निरेज उस अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध का अन्तर जघन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से अनन्तकाल का है । 'परमाणु पोरगला णं भंते । सेयाणं केवइयं कालं अंतरं होई' हे भदन्त ! सकम्प परमाणु पुगलों का अन्तर कितने काल का होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम! 'नत्थि अंतरं सकम्प परमाणु पुद्गलों में अन्तर होता नहीं है, क्योंकि लोक में सकम्प परमाणु पुगलों का सर्वदा अवस्थान रहता है, इसलिये इनमें अन्तर नहीं कहा गया है । 'निरेयाणं केवइयं कालं अंतरं होई' हे भदन्त ! जो पुद्गल परमाणु कम्पन रहित है उनका कितने काल का अन्तर होता हैं ? કાળ સુધીનું છે. તથા જે અન તપ્રદેશાવાળા સ્કંધ નિષ્કપ હોય છે, તેનું અંતર જઘન્યથી એક સમયનુ અને ઉત્કૃષ્ટથી આવલિકાના અસëાતમા ભાગ રૂપ કાળનુ છે આ અતર સ્વસ્થાનની અપેક્ષાથી થાય છે. પરસ્થાનની અપેક્ષાથી નિરંજ-નિષ્કપ તે અનંતપ્રદેશવાળા સ્કંધનુ અંતર જઘન્યથી એક સમયનુ... અને ઉત્કૃષ્ટથી અનત કાળનું છે. 'परमाणुपोग्गलाण भंते ! सेयाणं केवइयां क'ल' अंतर' होह' हे भगवन् સકમ્ફ પરમાણુપુદ્ગલાનું અંતર કેટલા કાળનું હાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં अनुश्री गौतमस्वामीने डे - "गोयमा !' हे गौतम 'नत्थि अंतर' सम्भ्य પરમાણુપુદ્ગલામાં અંતર હતું નથી કેમકે લેાકમાં સકમ્પ પરમાણુપુદ્ગલેનું सदा अवस्थान-रडेवानु होय छे, तेथी तेमाभां तर डेव नथी, “निरेयागं केवइय' काल' अंतर होइ' डे लगवन् ने परमाशुयुगल ५ विनाना हाय છે, તેઓનું અંતર કેટલા કાળનુ હાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે भ० ११४

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