Book Title: Bhagwati Sutra Part 15
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 917
________________ प्रमैयान्द्रका टीका श०२५ उ.४ सू०१२ पुद्गलानां सकम्प-निष्कपत्वनि० ९६ - निष्कम्पभवनलक्षणं तत्स्वस्थानान्तरं, तत्प्रतीत्य जघन्येनैकं समयं निश्चलताया जंघन्यकाललक्षणम् उत्कृष्टतोऽसंख्येयं कालं निष्कम्पनस्यैव उत्कृष्ट कालचक्षणम् 'तत्र जघन्यतोऽन्तरं परमाणुरेकं समयं चलनादुपरम्य पुनश्चलतीत्येवं रूपम् उस्कृष्टतिच स एव परमाणुरसंख्येयं कालं कचित् स्थिरो भूत्वा पुनश्चलतीति । 'परहाणं तिरं पडुच्च जहन्नेणं एक समयं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं' परस्थानान्तरं प्रतीत्य निधन्येन एक समयम् उत्कृष्टतोऽसंख्येयं कालम् परमाणो यत् परस्थाने द्वषणुकादौ अन्तर्भूतस्य अनन्तरं चलनव्यवधान तत् परस्थानान्तरम् , तत्पतीत्य, यदा द्वय णुकावस्थायां परिणतो भवति परमाणु स्तदा तस्य तत्परस्थानमिति कथ्यते 'इत्यर्थः तदा जघन्येनैक समयं भवति अन्तरम् उत्कृष्टतोऽसंख्येयं कालं भवति कि एक परमाणु एक समय तक चलन क्रिया से रहित हो जाय और फिर चलन क्रिया वाला बन जाय तो यह अन्तरजघन्य ले एक समयका स्वस्थान की अपेक्षा करके होता है और किसी स्थान में परमाणु का असंख्यात काल तक निष्कम्प अवस्था में रहकर पुनः चलनक्रिया वाला होना यह स्वस्थान की अपेक्षा उत्कृष्ट से असंख्यात समय का अन्तर होता है। ' . 'परहाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं' 'परमाणु का स्कन्धायस्था में होना यह परस्थान कहा गया है। जब पर'माणु विप्रदेशिक स्कन्ध के अन्तर्गत होता है और उसका चलन क्रिया से व्यवधान हो जाता है अर्थात् उसकी चलन क्रिया बन्द हो जाती है वह स्थानान्तर है इस परस्थान के अन्तर को लेकर जघन्य से एक "समय का अन्तर होता है । और उत्कृष्ट से असंख्यात काल का સમય સુધી ચલન ક્રિયા વિનાનો થઈ જાય અને તે પછી ચલન ક્રિયાવાળે બની જાય છે. આ અંતર જઘન્યથી એક સમયનું સ્વાસ્થાનની અપેક્ષાથી “હેય છે. અને કોઈ સ્થાનમાં પરમાણુઓનું અસંખ્યાત કાળ સુધી નિકંપ અવસ્થામાં રહીને ફરીથી પાછું ચલનક્રિયા વાળું થવું તે'સ્વથાનની અપેક્ષાથી • ट असभ्यात समय मत२ उपाय छे. . परदाणंतर पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं असखेज्ज कालं' ५२. માણુઓનું સ્કંધાવસ્થામાં હોવું એ પરસ્થાન કહેલ છે. જ્યારે પરમાણુ, બે , પ્રદેશવાળા સકંધની અંતર્ગત થાય છે, અને તેનું ચલન કિયાથી વ્યવધાન થઈ જાય છે, અર્થાત્ તેની ચલન કિયા બંધ થઈ જાય છે, તે પરસ્થાનાન્તર . છે. આ પરસ્થાનના અંતરને લઈને જઘન્યથી એક સમયનું અંતર હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી અસંખ્યાત સમયનું અંતર હોય છે. બે અણુ, વિગેરેમાં એક

Loading...

Page Navigation
1 ... 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972