Book Title: Bhagwati Sutra Part 15
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 910
________________ ८९३ भगवती नाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम | 'सड्डा वा अणड्डा वा सार्द्धा वा परमाणुपुद्गला अर्द्धा वा परमाणुपुद्गलाः, यदा तु वहवः परमाणवः समसंख्या भवन्ति तदा ते सार्द्धाः कथ्यन्ते यदा तु विषमसंख्यका अगवस्वदा ते अनर्द्धाः कथ्यन्ते । 'एवं जाव अनंतपएसिया' एवम् परमाणुपुद्गलवदेव द्विपदेशिकस्कन्धादारभ्य अनन्तमदेशिकान्ताः स्कन्धाः सार्द्धा वा अनर्द्धा वा भवन्तीति ॥ म्र०११ ॥ लाधिकारादेव इदमप्याह - 'परमाणुपोग्गले णं भंते' इत्यादि । मूलम् - परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सेए निरेए गोयमा ! सिय सेए लिय निरेए, एवं जाव अणतपए सिए । परमाणु पोग्गला णं भंते! किं सेया निरेया, गोयमा ! सेया वि निरेया 'परमाणुपोग्लाणं भंते! किं सड्डा अणड्डू।' हे भदन्त ! समस्त पुद्गल परमाणु क्या साई होते हैं अथवा अन होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोपमा' हे गौतम | 'सड्डा वा अणड्ढा वा' परमापुल सा भी होते हैं और अन भी होते हैं । जब बहुत से परमाणु पुद्गल, समान संख्यावाले होते हैं' तब वे सार्द्ध कहे जाते हैं और जब वे विषम संख्यावाले होते हैं तब वे अनर्द्ध कहे जाते हैं । 'एवं जाव अणतपएसिया' परमाणुपुलों के जैसा द्विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तमदेशिक स्कन्ध तक के स्कन्ध सार्द्ध और अनर्द्ध दोनों प्रकार के होते हैं । जिनके समान आधे भाग हो सके वे साई और जिनके ऐसे भाग नहीं हो सके वे अनर्द्ध है ॥ ११ ॥ 'परमाणुपोग्गला णं भते । किं सड्ढा अणड्ढा, डे ભગવત્ અધા જ પુદ્ગલ પરમાણુ શું અર્ધો ભાગવાળા હાય છે? અથવા અર્ધો ભાગ વિનાના होय हे ? मा प्रश्नना उत्तरमां अलुश्री हे छे है- 'गोयमा' हे गौतम! 'खड्ढा वा अणडूढा वा' परमाणु युद्धस अर्धा भागवाणा पशु होय है, अने અન-અર્ધા ભાગ વિનાના પણ હોય છે જ્યારે ઘણા પરમાણુપુલે સરખી સખ્યાવાળા હોય છે, ત્યારે તે સા-અર્ધો ભાગ સહિતના કહેવાય છે, અને જ્યારે તે વિષમ સખ્યાવાળા હોય છે, ત્યારે તે અન–અર્ધા लांग विनाना उडेवाय छे. 'एव' जाव अणतपएसिया' परमाणु युद्धसोना उथन પ્રમાણે એ પ્રદેશવાળા સ્કંધથી લઈને અનંત પ્રદેશવાળા સ્કા અર્ધા ભાગ વાળા અને અર્ધાં ભાગ વિનાના એમ બન્ને પ્રકારના હોય છે. જેએના સરખા અર્ધો ભાગ થઇ શકે તેએ સાધુ કહેવાય છે, અને જેને એ પ્રમાણેના भागन यर्ध शडे ते अन्ध-अर्धा लाग विनानी, हेवाय छे. ॥सू० ११॥

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