Book Title: Bhagwati Sutra Part 15
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 878
________________ ८६० भगवती सूत्रे शिक्रोऽपि स्कन्धः भननया चतुर्विधो भवतीति भावः । अथ वहुत्वमाश्रित्य . पृच्छति - 'परमाणु पोग्गलाणं भंवे ! पएमट्टयाए कि कडजुम्मा पुच्छा' परमाणु 'पुद्गलाः खलु भदन्त ! प्रदेशार्थतया कि कृतयुग्मा पृच्छा, हे मदन्त ! परमाणवः प्रदेशरूपेण किं कृतयुग्माः ज्योजाः द्वापरयुग्माः कल्योजावेति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोमा' हे गौतम ! 'ओघोदेसेण मिय कडजुम्मा जात्र सिप कलियोगा' ओघादेशेन - सामान्यरूपेण प्रदेशार्थ या परमाणुपुद्गलाः स्यात् कृतयुग्मा, स्यात् कदाचित् योजाः स्यात् द्वापरयुग्माः स्यात् कल्पोजा', 'विहाणादेसेणं नोकड जुम्मा नौ भोया नो दावरजुम्मा कलिओग' विधानादेशेन - विशेषरूपेण एकैकश इत्यर्थः नो कृतयुग्माः तो ज्योजाः नो द्वापरयुग्माः किन्तु कल्योजा एवेति । 'दुपरसिया णं पुच्छा' द्विप्रदेशिकाः खलु पृच्छा हे भदन्त ! द्विपदेशिका कन्याः प्रदेशातया कि कृतयुग्माः योजा द्वापरयुग्माः कल्योजावेति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोमा' हे गौतम! 'ओघादे सेणं सिय कडजुम्मा' ओघादेशेन " से जो अनन्त प्रदेशी पुद्गल स्कन्ध है वह भी चारराशिरूप होता हैं । कदाचित् वह कृतयुग्मराशिरूप होता है, कदाचित् वह पोजराशिरूप होता है, कदाचित् वह द्वापरयुग्नराशि रूप होता है और कदाचित् वह कल्यो जराशिरूप होता है । इस प्रकार से चारों प्रकार की राशिवाला होता है । 'परमाणुपोग्गलाणं भंते! पएसझ्याए किं कडजुम्मा पुच्छा' इस सूत्र द्वारा गौतमस्वामी ने बहुवचन को आश्रित करके प्रभुश्री से ऐसा पूछा है - है भदन्त ! जो परमाणुपुद्गल हैं वे क्या प्रदेशरूप से कृतयुग्मरूप हैं ? अथवा ज्योजरूर हैं ? अथवा द्वापरयुग्मरूप है ? अथवा कल्पोजरूप हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोपमा ! ओघादेसेण सिय कडजुम्मा, जाव सिय कलिभोगा' हे गौतम ! 4. સ્કંધના કથન પ્રમાણે અસખ્યાત પ્રદેશવાળા સ્કંધ પણ ભજનાથી કૃતયુગ્મ विगेरे ३५ हाय छे. 'एव' अनंतपएचिए वि' तथा प्रभा ने अनंत પ્રદેશવાળા પુદ્ગલ કંધ છે, તે પણ ચારે રાશિ રૂપ હાય છે. કોઇવાર તે કૃતસુખરાશી રૂપ હાય છે, કેાઈવાર ચૈાજરાણી રૂપ હાય છે. કોઈવાર તે દ્વાપરયુંગ્સ રાશિ રૂપ હાય છે, અને કેાઈવાર તે કયેાજ રાશિ રૂપ પણ હાય • છે. આ રીતે તે ચારે પ્રકારની રાશિવાળા રાય છે. '.J 44 " 'परमाणुपोग्गलाणं भंते! परसट्टयाए कि कडजुम्मा पुच्छा' मा सूत्रद्वारा શ્રી ગૌતમસ્વામી મહુવચનને આશ્રય કરીને પ્રભુશ્રીને એવુ પૂછે છે કેહું 'ભગવત્ જે પરમાણુ પુદ્ગલ છે, તેઓ શુ' પ્રદેશપણાથી કૃતયુગ્મ‘રૂપ છે ? અથવા યેાજ રૂપ છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ છે? અથવા કલ્ચાજ ३५ छे ? या प्रश्नमा उत्तरमा प्रलुश्री छे - 'गोयमा ! ओघादेसेण सिय

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