________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्याख्या प्रज्ञप्तिः
१ शतके | उद्देशः १ ॥ २७॥
लबीओ अने मंजरीओरूप मकटोने धारण करवावार्छ एवं अशोकवन, वृक्षोनुं वन, चंपार्नु वन, आंबार्नु वन, वृक्षोनुं वन, तुंबडानावेलाओनुं वन, वडवृक्षोनुं वन, छत्रौध वन, अलसीना वृक्षोनुं वन, सरसव, वन, कसुंबाना वृक्षोनुं वन, सफेद सरसवतुं वन तथा बपोरीया वृक्षतुं वन, घणी घणी शोभावडे अतीव शोभतुं होय छे तेज प्रमाणे वाणव्यंतरदेवोना स्थानो जघन्यथी दशहजार वर्षेनी स्थितिवाळा अने उत्कृष्टथी पल्योपमनी स्थितिवाळा घणा वाणव्यतरदेवो अने देवीओवडे व्याप्त, विशेष व्याप्त, उपराउपर | | आच्छादित, स्पर्श कराएला. अत्यंत अवगाढ थयेला शोभावडे अतीव अतीव शोभतां रहे छे. हे गौतम! बाणाव्यंतरदेवोना रहे-1 ठाणो आवा प्रकारना प्ररूप्यां ते कारणथी हे गौतम ! आ प्रमाणे कहेवाय छे. "असंयत् जीव यावत्-देव थाय छे' हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे हे, हे भगवन ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही भगवान् गौतम श्रमणभगवंत महावीरने वांदे छे, नमे छे, वांदीने तथा नमस्कार करीने, संयम तथा तपबडे आत्माने भावता विहरे छे. ॥२०॥ भगवन सुधर्मस्वामीए रचेला एवा श्रीमदभगवतीसूचना प्रथम शतकमा
प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण धयो.
८२-*-*
*A
For Private and Personal Use Only