Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥२६२॥
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वज्रमभिमुर्ह आवयमाणं पासइ पासइत्ता झियाति पिहाइ झियायित्ता पिहाइत्ता तहेव संभग्गमउडविडए सालबहत्था भरणे उपाए अहोसिरे कक्खागयसेयंपिव विणिम्मुयमाणे २ ताए उक्किट्ठाए जाव तिरियमसंस्वेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झमज्झेणं वीईवयमाणे २ जेणेव जंबुद्दीवे २ जाव जेणेव असोगवरपायवे जेणेव मम अंतिए तेणेव उवागच्छह २त्ता भीए भयगग्गरसरे भगवं सरणमिति बुयमाणे ममं दोपहवि पायाणं अंतरंसि वेगेण समोवडिए (सू० १४३) (ग्रन्थाग्रम् २००० )
भो ! देवेंद्र, देवराज शक्र क्यां छे ? ते चोरासीहजार सामानिक देवो क्यां ले ? यावत् ते चार चोरासीहजार (३, ३६००० ) अंगरक्षक देवो क्यां छे ? तथा ते क्रोडो अप्सराओ क्यां छे ? आजे हणुं छु, आजे वध करूं छु, ते बधी अप्सराओ जेओ मारे तावे नथी, आजे ढाबे यह जाओ, एम करीने तेवा प्रकारना अनिष्ट, अकांत, अप्रिय, अशुभ, असुंदर, मनने न गमे तेवा अने कानमां खटके तेवा वचनो ते चमरे काठ्यां. हवे ते देवेंद्र, देवराज शक्र तेवा प्रकारनी अनिष्ट यावत्-मनने अणगमती तथा कोइवार नहि सांभळेली अने कानने अप्रिय एवी ते चमरनी वाणी सांभळी, अवधारी रोषे भराणो अने यावत् क्रोधथी धमधम्यो तथा कपाळमां त्रण आड पडे तेम भवां चडावीने ते शक्रे असुरेंद्र, असुरराज चमरने आ प्रमाणे कां केः-हं भो ! मरणना इच्छुक अने यावत्-हीणी पुण्य चौदशने दहाडे जन्मेल असुरेंद्र, असुरराज चमर! आजे तुं न हइश आजे तुं हतो न इतो यह जइश, आज तने सुख नथी, एम करी, त्यांज उत्तम सिंहासन उपर बेठां बेठां ते शक्र इंद्रे वज्र ग्रहण करें. अने जळहळतुं स्फुटतुं, तडतडाट करतु, हजारो उल्कापातने मूकतुं, हजारो जाळोने छोडतुं, हजारो अंगारोने खेखतुं, आगना कणिआ अने जाळाओनी माळाओथी
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३ शतके
उद्देशः २ ॥२६२॥

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