Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 267
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२६॥ ***** ३ शतके जोशः२ ॥२६॥ * रक्षक देवोने पण भगाडी मक्या, एम करतो ते चमर रत्नने आकाशमा फेरवतो, शोभावतो ते उत्कृष्ट गतिवडे तिरछे असंग्थ्य द्वीप अने समुद्रोनी बच्चीवच नीकळयो. नीकळीने ज्या सौधर्मकल्प छे, ज्यां सौधर्मावतंसक नामे विमान थे. अने ज्या सुधर्मासमा छ स्यां आध्यो. आवीने तेणे पोतानो एक पग पावरवेदिका उपर मुक्यो अने बीजो एक पग सुधर्मासभामा मूक्यो. तथा पोताना परिघ रत्नबडे मोटा मोटा होकारापूर्वक तेणे इंद्रकीलने प्रणचार कुठलो. त्यारबाद ते चमर आ प्रमाणे बोल्यो के: कहिणं भो सके देविंदे देवराया कहिणंताओचउरासीह सामाणियसाहस्मीओ! जाच कहिणंताओचत्तारि चउरासीइओ आयरकखदेव साहस्सीओ? कहिणंताओअणेगाओ अच्छराकोडीओ अज अजहणामि अजमहेमि अन्ज वहेमि अज मम अवसाओ अच्छाओ वसमुषणमंतुत्तिकातं अणिटुं अकंतं अप्पियं असु. अमणु० अमणा फरुसं गिरं निसिरह, तए णं से सके देविंदे देवराया तं अणिé जाव अमणामं अस्सुयपुव्वं फरसं गिरं सोचा निम्मस आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निडाले साहह चमरंअसुरिंदं असुररायं एवं वदासी-हं भो चमरा! असुरिंदा! असुरराया! अपस्थियपत्थया! जाव हीणपुन्नचाउहस्सा अजं न भवसि नाहि ते सुहमत्थीतिकटु तत्व सीहाणवरगए वजं परामुसहरतं जलनं फुडतं तडतडतं उकामहस्माई विणिम्मुयमाणं जालासहस्साई पमुंघमाणं इंगालसहस्साइं पविश्विरमाणं २ फुलिंगजालामालासहस्सेहिं चक्खुविक्खे| बदिहिपडिघायं पकरेमाणं हयवहअइरेगतेयदिपंतं जतिणवेगं फुल्लकिंसयसमाणं महन्भगं भयंकरं चमरस्स हा असुरिंदस्स असुररमो वहाए वजं निसिरह । तते णं से चमरे अमुरिंदे असुरराया तं जलंत जाब भयंकर * For Private and Personal Use Only

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