Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२६५॥
३ शतके जोशः२ | ॥२६५॥
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मेणं चमरस असुरिंदस्स असुररन्नो बहाए बजे निसष्टे, तए णं मे इमेयारूवे अज्झथिए जाच समुप्पजित्था-नो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया तहेव जाव ओहिं पउंजामि देवाणुप्पिए ओहिणा आभोएमि हा हा अहो हतोमीतिकहु ताए उक्किट्ठाए जाव जेणेव देवाणुप्पिए तेणेव उवागच्छामि देवाणुप्पियाणं चउरंगुलमसंपत्तं बज पडिसाहरामि वजपडिसाहरणट्ठयाए णं इहमागए इह समोसने इह संपत्ते इहेव अज उवसंपबित्ताणं विहरामि, तं खामेमि गं देवाणुप्पिया! ग्वमंतु णं देवाणुपिया। ग्वमंतु मरहंतु णं| देवाणुप्पिया! णाइभुजो एवं पकरणयाएत्तिकटु ममं वंदइ नमसह २ उत्तरपुरच्छिमं दिसीभार्ग अवकमइ २ | वामेणं पादेणं तिक्खुत्तो भूमि दलेइ २ चमरं असुरिदं असुरराय एवं वदासी-मुकोऽसि णं भो चमरा ! असु. | रिंदा असुरराया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स पभावेणं, न हि ते दाणिं ममाओ भयमस्थीतिकटु जामेष
दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ॥ (सू० १४५) ४ हे गौतम ! ज्यारे ते शके वज़ लीधुं त्यारे तेणे एवा वेगथी मुठीवाळी हती के ते मुठीना वायुथी मारा कशाग्र वीजाया हवे | स देवेंद्र देवराज शके वजूने लइने, मने त्रण प्रदक्षिणा करी पछी तेणे भने नमन करी आ प्रमाणे का के:-हे भगवन् ! तमारो आशरो
लइने असुरेंद्र, अमुरराज चमरे मने मारी शोभाथी भ्रष्ट करवो धार्यों हतो. तेथी में क्रोधित थइ असुरेंद्र. असुरराज चमरने मारवा तेनी पाछळ वजू मृत्यु, त्यारपछी मने आ ए प्रकारनो आध्यात्मिक यावत्-संकल्प उत्पन्न थयो केः-असुरेंद्र, अमरराज चमर पोताना बळथी उपर न आवी शके. पछी में अवधिज्ञाननो प्रयोग कयों अने ते द्वारा में आप देवानुप्रियने जोया के तुरतज 'हा!
२. ५२-4
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