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३ शतके उद्देशः४ ॥२८७॥
नथीपण वायुकाय के. ॥१५६ ॥ व्याख्या- पभू ण भंते ! पलाहगे एगं महंइत्थिरूपा जाव सरमाणिया परिणामेत्तए १, हंता पभू । पभू णं
प्राप्ति भंते !षलाइए एगं महं इत्थिरूवं परिणामेसा अणेगाई मोषणाईगमित्तए, ताप, से भेते! किं आय॥२८७॥ ड्डीए गच्छा परिडीए गच्छह !, गोयमा! नो मायड्डीए गच्छति, परिदीए ग०, एवं नो आयकम्मुणा,
परकम्मुणा, नो आयपओगेण, परप्पओगेणं, ऊसितोदयं वा गच्छह पयोदयं वा गछह, से भंते ! किं बलाहए? इस्थी?, गोयमा! बलाहए णं से, णो खलु सा इत्थी, एवं पुरिसेण आसे हत्थीपभू णं भंते ! बलाहए एग महं जाणरूवं परिणामेत्ता अणेगाई जोयणाई गमित्तए जहा इत्थिरूवंतहा भाणियवं, णवरं एगओचक्कवालंपि गण्इ(त्ति) भाणियब्वं, जुग्गगिल्लिथिल्लिसीयासंदमाणियाणं तहेव ॥ (सू. १५७)॥
[40] हे भगवन् ! बलाहगे-बलाहक एक मोटुं स्त्रीरूप यावत्-पालखी-मीयाना परिणमाववा समर्थ छ ? [उ०] हे गौतम ! दहा , ले, तेम करवा समर्थ . [प्र.] हे भगवन् ! बलाहक, एक मोटु स्त्रीरूप करीन ( परिणमावीने) अनेक योजनो मुधी जया
| समर्थ के ? [उ.] हा, ते, तेम करवा समर्थ छे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते बलाहक, आत्मऋद्धिथी गति करे छ के परऋद्धिथी गति
| करे के ! [उ०] हे गौतम! ते, आत्मऋद्धिथी गति करतो नथी, पण परऋद्विधी गति करे छे. ए प्रमाणे आत्मकर्म अने आत्मप्रदयोगथी पण गति करतो नथी पण परकर्म अने परप्रयोगधी ते, गति करे छे. अने ते उंची थयेली के पडी गएली धजानी पेठे
| गति करे . [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते बलाहक, स्त्री छे ? [उ०] हे गौतम ! ते बलाहक, स्त्री नथी, पण बलाहक छे.ए प्रमाणे
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