Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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३ शतके उरेशा. ॥३०७॥
| सोमे महाराया (म० १६४)१॥ व्याख्या-AL. देवेंद्र, देवराज शक्रना सोम महाराजानी आज्ञामां, उपपातमां, कहेणमा अने निर्देशमा आ देवो रहे छः-सोमकायिको, सोमप्रज्ञप्तिः
देवकायिको, विद्युत्कुमारो, वायुकुमारीओ, चंद्रो, सूर्यो, ग्रहो, नक्षत्रो, तारारूपो अने तेवाज प्रकारना बीजा पण बधा देवो तेनी ४ ॥३०७॥ भक्तिवाळा, तेना पक्षवाळा अने तेने ताचे रहेनारा छे-ए बधा देवो तेनी आज्ञामा उपपातमां, कहेणमां अने निर्देषमा रहे छे. जंबू
द्वीप नामना द्वीपमां मंदर पर्वतनी दक्षिणे जे आ पेदा थाय हे:-ग्रहदंडो-मंगल विगैरे त्रण चार ग्रहो एक श्रेणीए तीरछा आवे ते, अहमुसलो-मंगल विगेरे चार ग्रहो उची श्रेणीए आवे ते, ग्रहगर्जितो ग्रहोने करवानी वखते गर्जारव थाय ते. ग्रहयुद्धो-एक नक्षत्रमां
उत्तर दक्षिण ग्रहोर्नु समश्रेणीपणे रहे थाय ते. गृहशृंगाटको एक नक्षत्रमा गृहनुं सीघोडाना आकारे रहे ते, ग्रहापसव्यो ग्रहोर्नु | प्रतिकुल गमन. अभ्रवृक्षो वृक्षोना आकारनां वादळां. संध्या, गांधर्वनगरो, उल्कापातो, दिग्दाहो-नीचे अंधारु होवा साधे उपर मोहूँ नगर वळतुं होय तेवो प्रकाश. गर्जावो, विजळीओ, धूळनी वृष्टि, यूपोक-शुक्लपक्षना पहेला त्रण दिवसनी चंद्रनी झांखी, घूमिकापीगशवाळी झाकळ, महिका कंडक घोळाशवाळी झाकळ, रजनो उद्घात-दिशामां धूळनो समूह, चंद्रग्रहणो, सूर्यग्रहणो, मर्यपरिवषो, प्रतिचंद्रो, प्रतिस्यों, इंद्रधनुष्, उदकमत्स्य-खंडित एव॒ इंद्रधनुष, कपिहसित-आकाशमा वादळां न होय अने विजळी थाय ते अथवा वांदराना मोढा जेवु आकाशमां मोढुं देखाय ते, अमोध-गता अने आधमता मूर्यनी वरखने ते किरणना अंधकारथी याय ते. पूर्व दिशाना पवनी, पश्चिमना पवनी, ग्रामदाहो यावत्-संनिवेशवाहो-प्राणक्षय, जनक्षय, धनक्षय, कुलक्षय, यावत्-व्यसनभूत अनार्य तथा तेबाज प्रकारना बीजा पण वधा, देवेंद्र, देवराज शक्रना सोम महाराजाथी अजाण्या नथी, अणजोएला नथी, अणसां
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