Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 303
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक जातना अनाभियोगिक देवलोकमां देवपणे उत्पन्न थाय? हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे हे... व्याख्या ता गाथार्थ:-इत्थी स्त्री, असी-तरवार, पडामा-पताका, जणगोवइ-जनोइ अने पर्यकासन, ए बां सपोने अमियोग अने विकुप्रज्ञप्तिः जण संबंधी हकीकत आ उद्देशकमा छे तथा ए प्रमाणे मायी साधु करे छे एम पण जणाव्यु के, ॥१५९ ॥ ॥२९॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना त्रीजा शतकमां पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. ३ शतके उरेशः६ | ॥२९७॥ *** * उद्देशक ६. (पांचमा उशिकनी पेठे आ छट्ठो उद्देशक पण विकुर्वणा संबंधी हकीकतने लगतीज डे ) अणगारे ण भंते ! भावियप्पा माई मिच्छट्टिी वीरियलद्धीए बेउब्बियलद्धीए विभगनाणलडीए वाणारसिं। मगरिं समोहए समोहणित्ता रायगिहे नगरे रूवाई जाणति पासति ?, हंता जाणइ पासह । से मते ! किं तहाभावं जाण. पा. अन्नहाभावं जा. पा.?, गोयमा! णो तहाभावं जाण पा०, अपणहाभाचं जा० पा० । से केण?णं भंते ! एवं बुचह-नो तहाभावं जा पा०, अन्नहाभा जाण. पा. १, गोयमा ! तस्म णं एवं भवतिएवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहए समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाई जाणामि पासामि, से से दसणे| विवच्चासे भवति, से तेणट्टेणं जाव पासति । अणगारे णं भंते ! भाबियप्पा माई मिच्छदिट्टी जाव रायगिहे *** For Private and Personal Use Only

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