Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 302
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके व्याख्या- प्रजातः .१२९६ उद्देशः५ ॥२९६॥ एक मोटा घोडाना रूपने अभियोजी अनेक योजनो मुधी जवाने समर्थ छ ? [उ०] हे गौतम ! ते तेम करवा समर्थ छे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते आत्मऋद्धिथी जाय छ, पारकी ऋद्धिथी जाय छे १ [३०] हे गौतम! आत्मऋद्धिथी जाय छे, पण पारकी ऋद्धिथी जतो नथी. ए प्रमाणे पोताना कर्मथी जाय छे. पण पारकाना कर्मथी जतो नथी, पोताना प्रयोमथी जाय छ पण पारकाना प्रयोगथी जतो नथी. तथा ते सीधो पण जई शके छे अने विपरीत पण जइ शके छे. | सेणं भंते ! किं अणगारे? आसे?, गोयमा अणगारेणं से, नो स्वलु से आसे, एवं जाव परासररूवं वा। से भंते किं मायी विकुब्वति, अमायी विकुम्वति ?, गोयमा! मायी विकुब्वति, नो अमायी विकुब्वति, माई णंभंते ! तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंते कालं करेइ कहिं उववजति?, गोयमा! अन्नयरेसु आभियोगेसु देवलोगेसु देवत्ताए उबवजइ, अमाई णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिकते कालं करेइ कहिं उवववति', गोयमा! अन्नयरेसु अणाभिओगेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववजह, सेवं भंते २त्ति, गाहा-इत्थीअसीपडागा जण्णोवइए य होइ बोब्वे । पल्हत्थियपलियंके अभिओगविकुब्वणा माई ॥ २६ ॥ (सू० १६०) तईए सए पंचमो उद्देसो समत्तो ॥३-५॥ । [प्र.] हे भगवन ! शुं ते अनगार अश्व-घोडो कहेवाय [उ०] हे गौतम ! ते अनगार छे, पण घोडो नथी. ए प्रमाणे शरमना रूप द सुधीना बधारूपसंबंधी जाण.[प्र०] हे भगवन् ! सुते विकुर्वण मायी अनगार करे, के अमायी अनगार पण करे ! [उ०] हे गौतम | ते विकुर्वण मायी अनगार करे अमायी अनगार न करे.[म.] हे भगवन् : ते प्रकारनें विकुर्वण कर्या पछी ते संबंधी आलोचन के प्रतिक्रमण कर्या सिवाय जो ते विकुर्वण करनार मायी साधु काळ करे, तो ते क्या उत्पन्न थाय? [उ०] हे गौतम! ते साधु, कोइ -* - For Private and Personal Use Only

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