Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 308
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥३०२॥ ३ शतके उद्देशः६ ॥३०२॥ *4%ACROSSAR जाणे अने जूए, के अन्यथाभावे न जाणे अने जूए. [उ.] हे गौतम ! ते, तेने तथाभावे जाणे अने जूए, पण अन्यथाभावेन | जाणे अने जूए. [प्र.] हे भगवन् ! तेनुं शुं कारण ? [उ०] हे गौतम ! ते साधुना मनमा एम थाय के, ए राजगृह नगर नथी, ए वाराणसी नगरी नथी अने ए बेनी वच्चेनो एक मोटो जनपद वर्ग नथी; पण ए मारी वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि, के अवधिज्ञान|लब्धि डे; ए में मेळवेला, प्राप्त करेलां अने मारी पासे रहेला ऋद्धि, युति, यश, बळ, वीर्य अने पुरुषाकार पराक्रम के तेनुं दर्शन अविपरीत होय छे. ते कारणथी हे गौतम ! एम कहेवाय ले के, ते साधु तथाभावे जाणे हे अने जूए के, पण अन्यथाभावे जाणतो नथी तेम जोतो नथी. [प्र०] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार बहारनां पुद्गलो मेळव्या सिवाय एक मोटा गामना रूपने, नगरना रूपने, यावत्-संनिवेशना रूपने विकुर्ववा समर्थ छे ? [उ.] हे गौतम ! ए अर्थ ममर्थ नथी. ए प्रमाणे बीजो आलापक कहेवो. विशेष ए के, बहारनां पुद्गलोने मेळवीने ते साधु तेवां रूपोने विकुर्ववाने समर्थ छे. [प्र०] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार केटलां ग्राम रूपोने विकुर्ववाने समर्थ है? [उ०] हे गौतम! जेम कोई एक युवान पुरुष पोताना हाथे युवति-स्वीना हाथने मजबूत पकडीने चाळे ए रीते साधु ग्रामरूपोने, संनिवेशरूपोने विकु. ॥ १६२ ॥ चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररन्नो कति आयरक्खदेवसाहस्सी पण्णता?, गोयमा! चत्तारि चउसडीओ आयरक्खदेवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, ते णं आयरक्खा वपणओ जहा रायप्पसेणइज्जे, एवं सव्वेसिं इंदाणं जस्स जत्तिया आयरक्खा भाणियब्वा । सेवं भंते! २॥ (सू० १६३) तइयसए छट्ठो उद्देसो संमत्तो ॥ ३-६॥ KHARA For Private and Personal Use Only

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