Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रन्नतिः
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अणगारे णं भंते ! भावियप्पा अमाई सम्मदिही बीरियलद्धीए वेउब्बियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए रायगिहे | | नगरे समोहए २ वाणारसीए नगरीए रूवाई जाणइ पासइ, हंता, से भंते। किं तहाभावं जाण पासह अन्न- ३ शतके हाभाव जाणति पासति ?, गोयमा! तहाभावं जाणति पासति, नो अन्नहा भावं जाणति पासति, से केणट्टेणं उद्देशः६ भंते ! एवं बुच्चा, गोयमा! तस्स णं एवं भवति-एवं स्वल्लु अहं रायगिहे नगरे समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए ॥३०॥ रूवाई जाणामि पासामि, से से दसणे अविवञ्चासे भवति, से तेणड्डेणं गोयमा! एवं वुञ्चति, बीओ आलावगो एवं चेव, नवरं वाणारसीए नगरीए समोहणा नेयब्वा, रायगिहे नगरे रूवाई जाणइ पासइ।
[प्र.Jहे भगवन् ! वाराणसी नगरीमा रहेलो अमायी, सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार वीर्यलब्धिथी, वकियलब्धिथी, अने| अवधिज्ञानलब्धिथी राजगृह नगरनुं विकुर्वण करीने रूपोने जाणे अने जूए ? [उ०] हे गौतम ! हा, दे, ते रूपोने जाणे अने जूए. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते, ते रूपोने तथाभावे जाणे अने जूए, के अन्यथाभावे जाणे, जूए ? [उ.] हे गौतम ! ते, ते रूपोने तथाभावे जाणे अने जूए, पण अन्यथाभावे न जाणे अने न जूए. [प्र.] हे भगवन् ! तेम थवानुं शुं कारण ? [उ०] हे गौतम ! ते साधुना मनमा एम थाय छे के, वाराणसी नगरीमा रहेलो हुँ राजगृह नगरनी विकुर्वण करीने रूपोने जाणु छु, तथा जोर ई. तेवू तेनुं दर्शन विपरीतता विनानुं होय छे, ते कारणथी हे गौतम : 'ते तथाभावे जाणे छे अने जए छे' एम कयुछे. बीजो आलापक पण एरीते कहेवो. विशेष ए के,-विकुर्वणा बारारणसीनी समजवी अने राजगृहमा रहीने रूपोर्नु जोवू अने जाणवू समजबुं
अणगारे णं भंते! भावियप्पा अमाई सम्मदिडी वीरियलद्धीए वेउब्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीप रायगिहं
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