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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२९९॥
३ शतके सोशः६ ॥२९॥
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नगरि रायगिहं च नगरं अंतरा एगं महं जणवयवग्गं समोहए २ वाणारसिं नगरि रायगिहं च नगरं अंतरा एगं महं जणवयवग्गं जाणति पासति, से भंते। किंतहाभावं जाणा पासह अनहाभा जाणइ पा.?, गोयमा ! णो तहाभावं जाणति पासइ, अन्नहा भावं जाणइ पासह, से केणड्डेणं जाव पासइ, गोयमा तस्सम्बलु एवं भवतिएस खलु वाणारसी[ए] नगरी, एस खलु रायगिहे नगरे, एस खलु अंतरा एगे महं जणवयवग्गे, नो स्वल्लु एस महं बीरियलद्धी वेउब्वियलद्धी विभंगनाणल० इड्डी जुत्ती जस बले बीरिए पुरिसकारपरक्कमे लढे पत्ते अभिसमण्णागए, से से दसणे विवच्चासे भवति.से तेणडेणं जाव पासति ।।
[म.] हे भगवन् ! मायी मिथ्यादृष्टि भावितात्मा अनगार वीर्यलन्धिथी, चैक्रियलन्धिी अने विभंगवानलब्धिथी वाराणसी नगरी अने राजगृह नगरनी बच्चे एक मोटा मनुष्य समुदायनी विकुर्वणा करे अने तेम कर्या पछी ते वाराणसी नगरी अने राजगृह नगरनी बच्चे एक मोटा जनसमूह वर्गने जाणे अने जूए ? [उ.] हे गौतम ! हा. ते, तेने जाणे अने जूर ? [प्र.] हे भगवन् ! शुं ते, तेने तशमावे जाणे जूए, के अन्यथाभावे जाणे जूए. [उ०] हे गौतम! ते, तेने तथाभावे न जाणे अने न जूग; पण अन्यथाभावे जाणे अने जूए. [.] हे भगवन् ! ने प्रकारे जाणे अने जूए, यावन्-तेनुं हुं कारण ? [उ.] हे गौतम ! ते साधुना मनमा एम थाय छे के, आ वाराणसी नगरी के अने आ राजगृह नगर छ, तथा ए बेनी वच्चे आवेलो आ एक भोटो जनपद वर्ग छे, पण ते मारी वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धी के विभंगज्ञानलब्धी नथी, तथा में मेळवेला प्राप्त करेला अने मारी पासे रहेला ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य के पुरुषाकार पराक्रम नथी, तेवू ते साधु- दर्शन विपरीत थाय छे ने कारणथी यावत्-ते, ते प्रमाणे जाणे छे अने जूए छे.
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