Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 295
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ २८९ ॥ www.kobatirth.org * गौतम ! जीव, जेवी केश्यावाळा द्रव्योंनुं ग्रहण करी काम करे के तेवी लेयाळी ते श्यावाळाओमां [प्र० ] हे भगवन् ! जे जीव वैमानिकोंमां उत्पन्न थवाने योग्य पाय ? [अ०] हे गौतम! जीव, जेवी लेश्यावाळा ट्रेन्योर्नु ग्रहण करी काळ करें प्रमाणे तेजोलेश्यावाळा ओमां, पद्मलेश्यावाळा ओमां अमें शुक्ललेश्यावाळाओमां ॥ १५८ ॥ अणगारे णं भंते! भावियप्पा बाहिरए योग्मले अपरियाइत्ता पम् बेभार फवर्य उल्लवेत्तरं वा पलंबेत्तर वा ?, गोयमा ! णो तिणट्ठे समट्टे । अणगारै णं भते । भाविर्यप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू बेभार पव्ययं उल्लंघेत्तए वा पलंघेत्तए वा ?, हंता पभू । अणगारे णं भंते!- भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाईसा जावइयाई रायगिहे नगरे रुवाई एवइयाई विकुव्वित्ता वैभारं पव्वयं अंतो अणुष्पविसित्ता पभू ममं वा विसमं करेत्तए विसमं वा समं करेत्तए १, गोयमा ! णो ईई समट्ठे, एवं चैव वितिओऽवि आलावगो, णवरं परियातित्ता पभू ॥ से भंते! किं माई विकुब्वति अमाई विकुब्बइ ?, गोयमा ! माई बिकुव्वड, नो अमाई विक्रव्वति, से केणद्वेण भंते ! एवं बुच्चइ जाव नो अमाई विश्व ?, गोयमा ! माई गं पणीयं पाणभोयणं भीषा२ वामेति, तस्मणं तेणं पणीएणं पाणभोषणेण अट्ठि अहंमजा पहली भवति पयणुए मंससोणिए भवति, जेविय से अहाबायरा चौरंगला तेऽविय से परिणमंति, तजहा- सोनिंदियत्ताए जावं फार्मिदिग्रत्ताए अडिडिमिकेससुरोमनहताएं सुबत्ताए सोणियत्ताएँ, अमाई णं हे पाणभीगण भोचा २ णो वामेइ, तस्स तेण लूपां For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते तेषी उत्पन्न यायेने ते ज प्रमाणे:- तेजीलेमगवन् ! केवी श्यावालाओमा उत्पन्न वाळामातें, उत्पन्न थाय छे ते आ ३ शतके जोशः ४ ॥ २८९ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330