Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 297
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२९॥ ***** ३ शतके जोशः४ ॥२९॥ नना) जे यथावादर पुद्गलो छे तेनु नेने ते ते रूपे परिणमन शय छै. ते आ प्रमाणे:-श्रोत्रंद्रियपणे यावत्-स्पसेंद्रियपणे, तथा | हाडपणे, हाडनी मज्जापणे, केशपणे, श्मश्रुपणे, रोमपणे, नखपणे, वीर्यपणे अने लोहिपणे (ते पुदगलो) परिणमे के. अने अमायी मनुष्य तो लूखं एबुं भोजन करे , एवं मोजन करीने ते वमन करतो नथी. ते लूखा पान भोजनद्वारा तेनां हाडनी मज्जा प्रतनु थाय से अने तेनुं मांस अने लोही धन थाय के तथा तेना जे यथावादर पुद्गलो छ तेनुं पण तेने परिणमन थाय के. ते आ प्रमाणे :-उच्चारपणे, मूत्रपणे अने यावत्-लोहिपले. तो ते कारणथी यावत्-अमायी मनुष्य विकुर्वण करतो नयी ? मायी, ते करेली प्रवृत्तिनुं आलोचन अने प्रतिक्रमण कर्ण सिवाय काळ करे छ माटे तेने आराधमा नथी अने अमायी, ते पोतानी भूलवाळी प्रकृचिर्नु आलोचन अने प्रतिक्रमण करीने काळ करे छे माटे तेने आराधना छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन ! ते ए प्रमाणे थे, ॥ १५९ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना त्रीजा शतकमा चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. * * * * For Private and Personal Use Only

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