Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२९३॥
भगवन् ! भावितात्मा अनगार केटला स्त्रीरूपोने विकुर्ववा समर्थ ? [उ०] हे गौतम ! जैम कोई एक युवान, युवतिने कांडाथी वाळचापूर्वक पकडे अथवा जेम पंडानी धरी आराओबी व्याप्त होय तेम भावितात्मा अनगार पण वैक्रियसमुद्घातथी समवहत थई ३ शतके यावत्-हे गौतम ! भावितात्मा अनगार आखा जंवृद्धीपने घणां स्त्रीरूपोबड़े आकीर्ण. व्यतिकीर्ण यावत-करी शकेले. गौतम!131 उपशा४ भावितात्मा अनगारनो आ ए प्रकारको मात्र विषय छे, पण ए प्रकारे कोईवार विकुर्वण थयं नथी, थतुं नथी अने चशे नहि. एज | ॥२९॥ | प्रमाणे क्रमपूर्वक यावत्-पालखी=मीयानारूप संबंधे समजबूं.
से जहानामए केइ पुरिसे असिचम्मपायं गहाय गच्छेज्जा एवामेव भावियप्पा अणगारेऽवि असिचम्मपायहस्थकिचगएणं अप्पाणेणं उ हास उप्पइज्जा, हंता उप्पाइजा। अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवतियाई पभू अमिचम्मपायहत्थकिञ्चगयाई रूवाई विउवित्तए?, गोपमा! से जहानामए-जुवतिं जुधाणे
हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा तं व जाब विउब्धिसु वा ३ से जहानामा केइ पुरिसे एगओग्हागं काउं गरजा, एवा६ मेव अणगारेऽवि भावियप्पा एगओग्डागाहत्यकिञ्चगएणं अप्पाणेण उडूद वेहास उप्पएन्जा ?, हंता गोयमा !
उप्पएज्जा । अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवतियाई पभू एगोण्डागाहस्थकिच्चगयाई रूवाई विकुञ्चित्तए ? एवं चेय जाव विकुब्बिसु वा ३ । एवं दुहओपडागंपि।।
(प्र०] हे भगवन् ! जेम कोइ एक पुरुष तरवार अने ढाल लइने गति करे, एज प्रमाणे भावितात्मा अनगार पण तरवार अने ढालवाला मनुप्यनी पेठे कोइपण कार्यने अंगे पोते उंचे आकाशमा उडे ? [उ०] हे गौतम ! हा, उडे. [प्र०] हे भगवन् ! भावि
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