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३ शतके उमेशः२ ॥२६७॥
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णियाणं देवाणं उड्ढें गतिविसए सीहे २ चेव तुरिए २ चेव, अहे गतिविसए अपे२ चेव मंदे २ चेव, जावतियं व्याख्या- | खेत्तं सके देविदे देवराया उड्ढे उप्पयति एकेणं समएणं तं वजे दोहिं. ज बज दोहिं तं चमरे तीहि, सब्बप्रज्ञप्तिः जत्थोवे सकस्स देविंदस्स देवरन्नो उड्डलोयकंडए, अहेलोयकंडए संखेनगुणे, जावतियं खत्तं चमरे असुरिंदे असु॥२६७॥ रराया अहे ओवयति एकेणं समएणं तं सक्के दोहिं, जं सके दोहितं बन तीहिं, सम्वत्थोवे चमरस्स असरिंदस्स
असुररन्नो अहेलोयकंडए, उड्ढलोयकंडए संखेजगुणे । एवं खलु गोयमा! सकेणं देविदेणं देवरपणा चमरे असुरिंदे असुरराया नो संचापति साहस्थि गेणिहत्तए ।
[प्र०] हे भगवन् ! एम करी श्रमण भगवंत महाबीरने बांद्या, नमस्कार कर्यों अने तेओए आ प्रमाणे क{ के:-हे भगवन् ! देव मोटी ऋद्धिवाळो छे, मोटी कांतिवाळो छे अने यावत्-मोटा प्रभाववालो के के, जेथी ते पूर्व-पडेलांज पुद्गलने फेंकीने पछी | तेनी पाछळ जइने तेने ग्रहण करवा समर्थ छ ? [उ.] हे गौतम ! हा, देव तेम करवा समर्थ हे. [प्र०] हे भगवन् ! पहेला फेकेल
पुद्गलने, देव, पाछळ जइने लइ शके के, तेनुं शुं कारण ? [उ०] हे गौतम ! ज्यारे पुद्गल फेंकवामां आवे रे न्यारे तेनामां शरु| आतमांज शीघ्रगति होय छे. अने पछी ते मंदगतिवाडं थइ जाय छे. त्या मोटी ऋद्धिवानो देव तो पहेलो पण अने पछी पण शीघ्र होय छे. शीघ्र गतिवाळो होय छे, त्वरित होय के अने त्वरित गतिवाळो होय छे, माटे ए कारणथीज यावत्-देव, फेंकेल पुद्गलने पण तेनी पाछळ जइने लइ शके हे. [प्र०] हे भगवन् ! जो मोटी ऋद्धिवालो देव, यावत्-पाछळ जइने लइ शके छे तो पछी हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शक्र, पोताना हाथे असुरेंद्र, असुरराज चमरने पकडबा केम न समर्थ निवडयो ! [उ०] हे गौतम !
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