Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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प्रज्ञप्तिः
पाणी उपर आवे ए खरूं के मही ? हा, ते वर-तुरतज पाणी उपर आवे. हे मंडितपुत्र ! एज रीते आत्माद्वारा आत्मामा संवृत्त थएल व्याख्या- ईर्यासमित अने यावत्-गुप्त ब्रह्मचारी सावधानीधी गमन करनार, स्थिति करनार, बेसनार, मूनार तथा सावधानीथी वस्त्र, पात्र,
४३ शतके कंबल, अने रजोहरणने ग्रहण करनार अने मृकनार अनगारने यावत्-आँखने पटपटावतां पण विमात्रापूर्वक मृक्ष्मईर्यापथिकी क्रिया उद्देशः३ ॥२८२॥ थाय छे अने प्रथमसमयमां बद्धस्पृष्ट थएली, बीजा समयमां वेदारली, त्रीजा समयमा निर्जराने पामेली ते क्रिया भविष्यकाळे २८॥
अकर्म पण थइ जाय . माटे हे मंडितपुत्र ! 'ज्यांसुधी ते जीव, हमेशा समित कंपतो नथी यावत्-तेनी मरण समये द्र मुक्ति थाय हे. ॥ १५२ ।।। HI पमत्तसंजयस्स णं भंते ! पमत्तसंजमे बहमाणस्म सव्वावि य णं पमत्तद्धा कालओ केवचिरं होइ ?, मंडि
यपुत्ता। एगजीवं पञ्च जहन्नेणं एवं समयं, उकोसेणं देसूणा पुब्बकोडी, णाणाजीवे पडच सम्बद्धा ।। अप्प
मत्तसंजयस्स णं भंते ! अप्पमत्तसंजमे बहमाणस्म सव्वावि य णं अप्पमत्तद्धा कालओ केवच्चिरं होई ?, मंडि★यपुत्ता! एगजीवं पडुच जहनेणं अंतोमुहुतं, उक्को. पुटवकोडी देमणा, णाणाजीवे पडुच्च सम्बद्धं, सेवं भंते !
त्ति भयवं मंडियपुत्ते अणगारे समण भगवं महावीरं बंदह नमंसह २ संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे ६ विहरइ ।। (मृ. १५३) । हा [प्र०] हे भगवन् ! प्रमत्त संयमने पाळता प्रमत्त संयमिनो बधो मळीने प्रमत्तसंयम-कान केटलो थाय छ ? [उ.] हे मंडित
पुत्र ! एक जीवने आश्रीने जघन्ये एक समय अने उत्कृष्टे देशोन पूर्वकोटि, एटलो प्रमत्तसंयमकाळ-थाय हे अने अनेक जातना
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