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२ शतके
प्रज्ञप्तिः ॥१४१
उद्देशः ॥१४॥
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यावत्-द्रव्यथी जीव एक छे अने अंतवालो छ, क्षेत्रथी जीव असंख्य प्रदेशवाळो छे अने असंख्य प्रदेशमा अवगाढ छे, तथा तेनो दि अंत पण छे. काळधी जीव कोइ दिवस न हतो, एम नथी, यावत्-नित्य छे अने तेनो अंत नथी, भावथी जीव अनंत ज्ञान पर्याय
रूप छ, अनंतदर्शन पर्यायरूप छे, अनंत अगुरुलघु पर्यायरूप के अने तेनो छेडो नथी. तो हे स्कंदक! ए प्रमाणे द्रव्यजीव अंतवाळो करे, क्षेत्रजीव अंतवाळो छे, काळजीव अंत विनानो छे, तथा भावजीव अंत विनानो छे. वळी हे स्कंदक! तने जे आ विकल्प थयो हतो के. सिद्धि अंतवाली छे के अंत विनानी छे । तेनो पण आ उत्तर छे-हे स्कंदक! में सिद्धि चार प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-द्रव्यथी सिद्धि एक ले अने अंतवाली छे, क्षेत्रथी सिद्धिनी लंबाई पहोळाइ पीस्तालीश लाख योजननी छे. अने तेनी परिधी एक कोड, तालीश लाख, त्रीसहजार, बसेने ओगणपचास योजन करता काइक विशेषाधिक छे. तथा तेनो अंत छेडो पण वे. काळथी सिद्धि कोई दिवस न हती एम नथी, कोई दिवस नथी एम नथी. अने कोई दिवस ते नहीं दृशे ए, पण नथी. तथा भावथी सिद्धि भावलोकनी पेठे कहेवी. तेमां द्रव्यसिद्धि अने क्षेत्रसिद्धि अंतवाळी छे, तथा का सिद्धि अने भावसिद्धि अंत विनानी -सिद्धि अंतवाळी पण हे अने अंत विनानी पण छे. वळी हे स्कंदक ! तने जे आ संकल्प थयो हतो के, सिद्धो अंतवाळा के के अंत विनाना छे ? तेनो पण आ निवेडो हे:-अहीं बधुं आगळनी पेठे कहे. यावत्-द्रव्यथी सिद्ध एक छे अनें अंतवाला छे, क्षेत्रथी सिद्ध असंख्य प्रदेशवाग छे अने असंख्य प्रदेशमा अवगाढ छे. तथा तेनो अंत पण छे. काब्धी सिद्ध आदिवाला छे अने अंत विनाना छे नेनो अंत नथी भावधी सिद्ध अनंत ज्ञानपर्यायरूप छे, अनंत दर्शनपर्यायरूप छे, यावत्-अनंत अगुरुलघु पर्यवरूप छ अने तेनो अंत नथी अर्थात् द्रव्यथी अने क्षेत्रथी सिद्ध अंतवाला छे तथा काळथी अने भावधी सिद्ध अनंत अंत विनाना छे. सिद्धो
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