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२
शतके
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शः५
॥१८४॥
अनेक जातना वृक्षखंडोथी सुशोभित छे, शोभावाको छे, अने जोनाराओनी आंखोने गमे तेवो में. ते झरामां अनेक उदार मेघो या संस्वेदे में, संमूळे हे अने बरसे हे वळी ते उपरांत झरामांथी हमेशा उनू उर्नु अपकाय पाणी झर्षा करे हे. हे भगवन् ! ते
ए प्रज्ञप्ति
दए प्रमाणे केवी रीते हे ? [उ०] हे गौतम ! ते अन्यतीथिको जे कांइ कहे छे अने यावत् कयुं छे ते खोकयुं छे, वळी हे गौतम ! ॥१८४॥ हु तो आ प्रमाणे कई छु, भाषु छु, जणायूँ छु, अने प्ररूपुंछ के. राजगृह नगरनी बहार वैभारपर्वतनी पासे 'महातपोपतीरप्रभव'
नामर्नु झरणुं छे. तेनी लंबाइ अने पहोगाइ पांचसो धनुष्य जेटली, तेनो आगळनो भाग अनेक जातना वृक्षखंडोथी सुशोभित डे, सुंदर बे, प्रसन्नता पमाडे तेवो छे. दर्शनीक है, रमणीय से, अने जोनारने संतोष उपजावे तेवो है. ने झरणमां अनेक उष्णयोनिबाळा जीवो अने पृद्गलो पाणीरूपे उत्पन्न थाय छे, नाश पामेले क्यवे के अने उपचय पामे के ते उपरांत ते झरणमांथी हमेशा
उष्णोष्ण पाणी झर्या करे .हे गौतम ! ए महातपोपतीरप्रभव नामना झरणानो अर्थ छे. हे भगवन् ! ले ए प्रमाणे छे, हे भगद्रवन् ! ते ए प्रमाणे छे एम यही भगवंत गौतम श्रमण भगवंत महावीरने बांदे छे, अने नमे .. ११२ ॥
भगवत् सुधर्मस्वामीग्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना बीजा शतकमा पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण ययो.
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