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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
३ शतके उद्देशः२ ॥२४॥
॥२४९॥
*444
ताओ अच्छराओ नो आदाति नो परियाणति ?, णो णं पभू ते असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छराहि सद्धि | | दिव्वाइंभोगभोगाई भुंजमाणा विहरित्तए, एवं ग्बल गोयमा! असुरकुमारा देवा मोहम्मं कप्पं गया पगमिस्संति य । (सू१४१)।
०] हे भगवन् ! ते अमरकुमारो उंचे सौधर्मकल्प सुधी जाय छे, गया , अने जशे तेनु शु कारण ? [उ.] हे गौतम ! | ते देवोने जन्मथीज बैरानुबंध छे. वैक्रियरूपोने बनावता तथा भोगोने भोगवता से देयो आत्मरक्षक देवीने त्रास उपजाचे हे तथा यथोचित नाना नाना रत्नो लइने पोते उजड गाममा चाल्या जाय हे. [.] हे भगवन् ! ते देवो पासे यथोचित नाना नाना रत्नो होय छे ? [उ०] हे गौतम ! हा, तेओनी पासे नाना नाना रत्नो होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! ज्या ते असुरो, वैमानिकोना रत्नो उपाडी जाय त्यारे वैमानिको तेओने शुं करे छ ? [उ०] हे गौतम ! रत्नो लीधा पछी ते असुरोने शारीरिक व्यथा-दुःख सहन करवू पडे छे. [प्र.] हे भगवन् ! उपर गया एवाज ते असुरकुमार देवो त्यां रहेली अपसराओ माथे दिव्य अने भोगवा योग्य मोगोने भोगवी शके खरा, विहरी शके खरा ? [उ.] हे गौतम ! ए प्रमाणे करवाने ते अमुरकुमार देवो समर्थ नथी. किंतु तेओ
त्यांथी पाछा वळे के अने अहीं आवे छे. जो कदाच ते अप्सराओ तेओनो आदर करे, तेओनो स्वामी तरीके स्वीकार करे तो ते ४ असुरकुमार देवो, ते त्यां रहेली अप्पसराओ साथे दिव्य अने भोगववा योग्य भोगोने भोगवी शके छे, भोगबता रही विहरी शके
छे. हवे कदाच ते अप्सराओ लेओनो आदर न करे तथा तेओने स्वामी तरीके न स्वीकारे तो ते अमरकुमार देवो, ते अप्पसगओ साथे दिव्य अने भोगववायोग्य भोगोने भोगवी शकता नथी. हे गौतम ! 'अमुरकुमार देवो, सौधर्मकल्पमुधी गया छ, जाय छे
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