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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
॥१९२॥
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कालओ भावओ गुणओ, दव्वओ णं पोग्गलत्थिकाए अनंताई दवाई, खेत्तओ लोयप्यमाणमेत्ते, कालओ न कयाइ न आसि जाव निचे, भावओ वण्णमंते गंध० रस० फासमंते, गुणओ गहणगुणे । ( सू० ११७ )
[प्र.] हे भगवन् ! अस्तिकायो केटला कथा छे ? [अ०] हे गौतम 1 अस्तिकाय पांच कया छे. ते आ प्रमाणेः- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय अने पुद्गलास्तिकाय [प्र० ] हे भगवन् ! धर्मास्तिकायमा केटला रंग छे ? केटला गंध छे, अने केटला रस छे अने केटला स्पर्श छे ? [अ०] हे गौतम! धर्मास्तिकायमा रंग, गंध, रसके स्पर्श नथी अर्थात् धर्मास्तिकाय अरूपी छे, अजीव छे अने शाश्वत, अवस्थित लोकद्रव्य छे. संक्षेपधी पांच प्रकार छे ते आ प्रमाणे:-द्रव्यथी क्षेत्रथी कालथी भावधी गुणथी द्रव्यथी धर्मास्तिकाय एक छे. क्षेत्रथी ते लोक प्रमाण जेवडो लोक छे. काळथी ते कदापि न हतो एम नथी, कदापि नथी एम नथी अने यावत् ते नित्य छे. भावथी रंग विनानो, गंध विनानो, रस विनानो अने स्पर्श बिनानो छे. गुणधी ते गतिगुणवाळो छे. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकाय संबंधी पण समजनुं विशेष ए के, ते गुणथी स्थितिगुणवाळो छे. आकाशास्तिकाय संबंधे पण एज प्रकारे जाणवुं. विशेष ए के:- ते आकाशास्तिकाय क्षेत्रथी लोकालोक प्रमाण= लोकालोक जेवडो छे, अनंत के अने यावत गुणथी ते अवगाहना गुणवाळो छे. [प्र० ] हे भगवन् ! जीवास्तिकायमां केवला रंग छे, केटला गंध छे, केटला रस छे अने केटला स्पर्श छे ? [अ०] हे गौतम! ते रंग बिनानो छे अने यावत्-अरूपी छे, ते जीव छे, शाश्वत छे, अने अवस्थित लोकद्रव्य छे. तेना पांच प्रकार कह्या छे:-द्रव्यथी जीवास्तिकाय अने यावत्-गुणथी जीवास्तिकाय. जीवास्तिकाय अनंत जीवद्रव्यरूप छे, क्षेत्रथी मात्र लोकप्रमाण= जेवडो छे, काळथी ते कदापि न हतो एम नथी अने ते नित्य छे, वळी भावथी ते जीवास्तिकाय रंग विनानो, गंध
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२ शतके
उद्देशः १० ॥१९२॥