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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥१४३॥
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छे:- हे स्कंदक! में मरणना वे प्रकार जंणान्या छे ते आ प्रमाणे:- एक बालमरण अने बीजुं पंडितमरण. [प्र० ] बालमरण ए शुं ? [[अ०] बालमरणना बार मेद कला छे ते आ प्रमाणे:-बलन्मरण (तरफडता तरफडता मरखं) वशार्तमरण (शस्त्रादिकना लागवाथी अथवा भ्रष्ट श्रवाथी) तद्भवमरण ( मरी गया बाद पुनःतेज गतिमां आवj) पहाडथी पडीने मरखं, झाडथी पडीने मखु, पाणी बीने मर, अभिमां पेसीने मरं, शेर खाइने मरर्खु, झाड विगेरे साथे गळफांसां खाइने मरयुं, अने गीध आदि जंगली जानवरो ठोले तेथी मरखं, हे स्कंदक ! ए बार प्रकारना बालमरणवडे मरतो जीव पोते अनंतवार नारकीना भगोने पामे छे. तिर्यंच, मनुष्य, अरे देवगतिरूप, अनादि, अनंत तथा चार गतिवाळा संसाररूप वनमां ते जीव रखडे छे अर्थात् ए प्रमाणे बार जातना मरणवडे मरतो ते जीव पोताना संसारने वधारे छ. ए बालमरणनी हकीकत छे. [प्र० ] पंडितमरण ए शुं १ [३०] पंडितमरण वे प्रकारनुं क छे. ते आ प्रमाणे:- पादपोपगमन (स्थिर रहने मरं) अने भक्तप्रत्याख्यान ( खानपानना त्यागपूर्वक मर्खु ) [ प्र० ] पादोपगमन ए शुं ? [अ०] पादोपगम ने प्रकारनुं कबुं : छ. ते . आ प्रमाणे:- निर्धारिम (जे मरनारनुं शय बहार काढी संस्कारवामां आवे ते मरनारनुं भरण निर्धारिम मरण) अने अनिर्धारिम (पूर्वोक्त निर्धारिम मरणथी उलटुं मरण ते अनिर्धारिम मरण) ए बने जातनुं पादोपगमन मरण प्रतिकर्म विनानुंज छे. ए प्रमाणे पादोपगमन मरणनी हकीकत छे [प्र० ] भक्तप्रत्याख्यान ए शुं ? [ उ० ] भक्तप्रत्याख्यान मरण वे प्रकारनुं कथुं छे. ते आ प्रमाणे:-निर्धारिम अने अनिर्धारिम, ए बने जातनुं भक्तप्रत्याख्यान मरण प्रतिकर्मवाळुंज छे. ए प्रमाणे भक्तप्रत्यागयान मरणनी हकीकत छे. हे स्कंदक ! ए बने जातना पंडितमरणवडे मरतो जीव पोते नैरयिकना अनंत भवनें पामतो नथी, यावत् संसाररूप वनने वटी जाय छे. ए प्रमाणे मरता जीवनो संसार घटे छे. ए प्रमाणे पंडित मरणनी हकीकत छे.
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२ शतके उद्देशः १ ॥१४३॥