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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
२ शतके
उद्देशः५ ॥१५॥
[म०] हे भगवन् ! अन्यतीथिको आ प्रमाणे कहे थे, भाषे.के, जणावे छे. अने प्ररूपे के. "कोइपण साधु काळ कर्या पछी दादेव थाय अने ते देव त्यां वीजा देवो साथे अथवा बीजा देवोनी देवीओ साथे विषयसेवन करतो नथी. नेमज पोतानी देवीओने | | वश करीने तेओनी साये पण परिचारणा करतो नथी, पण ते देव, पोतेज पोतानां नवां वे रुप धारण करे छे. तेमा एक रूप देवनुं
अने बीजु रुप देवीनुं होय के ए प्रमाणे बे रूप बनावीने ते देव देवी साधे विषयसेवन करे . ए प्रमाणे एक जीव एकज काळे वे | वेदने अनुभवे छ:- १ पुरुषवेद अने स्त्रीवेद. आ प्रमाणे अन्यमतावलंब ओनी वक्तव्यता कहेवी अने ते स्त्रीवेद अने पुरुषवेद." हे
भगवन् ! ते ए प्रमाणे केम थाय ? [उ०] हे गौतम! जे ते अन्यतीथिको ए प्रमाणे को छे, स्त्रीवेद अने पुरुषवेद. ते अन्यमताव. लंबीओए जे प्रमाणे कांछे ते असत्य कयु के. वळी हे गौतम! हुँ तो आ प्रमाणे कहुं हुं, भाषु छु, जणावू , अने प्ररूपुंछु के कोइपण निग्रंथ मर्या पछी कोइ एक देवलोकमां उत्पन थाय छे, जे देवलोको मोटी ऋद्धिवाळा मोटा प्रभावधाळा, दूर जवानी शक्तिवाला अने| | लांचा आयुष्यवाळा होय छे. पवा देवलोकमा जइने ते साधु मोटी ऋद्धिवाको अने दशे दिशाने प्रकाशित करतो, शोभायमान करतो, ते स्वरूपवान देव थाय के अने त्यां ते देव बीजा देवो साथे तथा बीजा देवनी देवीओ साधे तेओने बश करीने परिचारणा करे छ तेमज पोतानी देवीओने वश करीने परिचारणा करे छे. पण पोते पोताना वे रुप बनावीने परिचारणा करतो नथी. एक जीव एक वेदने अनुभवे के:-कीवेद, के पुरुषवेद. जे समये स्त्रीवेदने वेदे छे, ते समये पुरुषवेदने नथी वेदतो. जे समये पुरुषवेदने वेदे के ते समये स्त्रीवेदने नथी वेदतो. स्त्रीवेदना उदयथी पुरुषवेदने नी वेदतो. पुरुषवेदना उदयथी स्त्रीवेदने नथी वेदतो. माटे एक जीव एक समये एक वेदने वेदे हे. ते आ प्रमाणे:-र्ख बेद, के पुरुषवेद. ज्यारे स्त्रीवेदनो उदय थाय त्यारे स्त्री पुरुषने प्रार्थे छे अने
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