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६ मा णं वंसा मा ण मसगा मा णं वाइयपित्तियसंभियसं निवाइयविविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु-18 व्याख्या त्तिक पस मे नित्थारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खमाए नीसेसाए अणुगामियत्ताए भविस्सइ, सं
२ शतके प्रज्ञप्तिः इच्छामि णं देवाणुप्पिया! सयमेव मुंडावियं सयमेव सेहा वियं सयमेव सिक्वावियं सयमेव आयारगोयरं
उमेशः१ ॥१४६॥ || विणयषेणइयचरणकरणजायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं। ॥११॥
॥१४॥ दी हे भगवन् ! घडपण अने मोतना दुःखी आ संसार सळगेलो छ, वधारे सळगेलो छे अने ते एक काळेज सळगेलो त्या वधारे
सळगेलो छे जेम कोई एक गृहस्थ होइ अने तेनुं घर सळगतुं होय, तथा ते सळगता घरमां तेनो बहु मूल्यवाळी अने ओछा बजन
पाळी सामान होय, ते सामानने ते गृहस्थ चळवा देतो नथी. पण ते सामानने लइने एकांते जाय छ कारणके ते गृहस्य एम विचारे तो के, जो थोडो सामान बचे तो मने ते आगळ पाछळ हिवरूप, सुखरूप, कुशळरूप, अने छेवटे कल्याणरूप थशे. ए प्रमाणेज है
देवानुप्रिय ! मारो पण आत्मा एक जातना सामानरूप के अने ते इष्ट, कांत, प्रिय, सुंदर, मनगमतो, स्थिरतावालो, विश्वासपात्र, संमत, अनुमत, बहुमत, अने घरेणाना कंडिया जेवो छ, माटे तेने टाढ, तडको, मुख, तृषा, चोर, वाघ के सर्प, डांस, मच्छर, वात, पित श्लेष्म, वगेरे अने समिपात वगेरे वगेरे अनेक प्रकारना रोगो अने जीवलेण दरदो तथा परिषह अने उपसर्गो नुकशान न करे अने जो हुँ तेने पूर्वोक्त विनोथी बचावी ल तो ते मारो आत्मा मने परलोकमां हितरूप, सुखरूप, कुशळरूप, अने परंपराए | कल्याणरूप थशे. माटे हे देवानुप्रिय! हुँ इछु छु के आपनी पासे हुँ दीक्षित थाउं. मुंडित थाउं, प्रतिलेख आदि क्रियाओने शीखं. स्त्र अने तेना अर्थाने जाणुं, तथा हु इर्छ के तमे आचारने विनयने, विनयना फळने, चारित्रने, पिंडविशुद्धयादिक कारणने,
कारख
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