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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥ ५३ ॥
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कमेज्जा, सिय बालपंडियवीरियताए अवकमेजा । जहा उदिनेणं दो आलावगा तहा उवसंतेणबि वो आलावगा भाणियव्या, नवरं उबट्ठाएजा पंडियवीरित्ताए अवकमेज्जा बालपंडियवीरित्ताए । से भंते । किं आयाए अवकमइ अणायाए अवकमइ ?, गोपमा ! आयाए अवकमर, णो अणायाए अवकमर, मोहणिजं कम्मं वेरमाणे से कहमेयं भंते! एवं १, गोयमा ! पुदि से एवं एवं रोगह, इयाणि से एवं एवं णो रोयइ एवं खलु, एवं ( सू० ४० )
[प्र०] हे भगवन्! कृतमोहनीय कर्म ज्यारे उदयमां आवेलं होय त्यारे जीव उपस्थान करे- परलोकमां प्रकृति प्रयाण करे [[अ०] हे गौतम! हा त्यारे उपस्थान करे. [प्र० ] हे भगवन् ! ते उपस्थान शुं वीर्यताथी थाय ! के अवीर्यताथी थाय ! [उ०] हे गौतम! ते उपस्थान वीर्यताथी थाय, पण अवीर्यताथी न थाय. [प्र० ] हे भगवन्! जो ते उपस्थान वीर्यताथी थाय तो शुं बालवीर्यताथी थाय, पंडितचीर्यताथी थाय के बालपंडितवीर्यतायी थाय ? [30] हे गौतम! ते उपस्थान बालवीर्यताथी थाय, पण पंडितवीर्यताथी के वालपंडितवीर्यताथी न थाय. [प्र० ] हे भगवन् ! कृतमोहनीयकर्म ज्यारे उदयमां आवेलं होय त्यारे जीव अपक्रमण करे उत्तम गुणस्थानकथी हीनतर गुणस्थानके जाय ? [उ०] हे गौतम! हा अपक्रमण करे. [प्र०] हे भगवन् ! ते अपक्रमण यावत् बालवीर्यताथी पंडितवीर्यताथी के बालपंडितवीर्यताथी थाय ? [अ०] हे गौतम! बालवीर्यताथी थाय, अने कदाचित् बालपंडितवीर्यताथी पण थाय, पण पंडितवीर्यताथी न धाय. जेम 'उदयमां आवेल' पद साधे वे आलापक कथा तेम 'उपशांत' साधे पण वे आलापक कहेना विशेष ए के त्यां पंडितवीर्यताथी उपस्थान थाय अने बालपंडितवीर्यताथी अपक्रमण थाय. [ प्र० ] हे भगवन् ! ते
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१ शतके उद्देश: ४
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