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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः ।। ५७ ।।
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उद्देशः ४
॥ ५७ ॥
पण त्रण आलापक कहेवा. ||४२॥ [ प्र० ] हे भगवन् ! बीतेला अनंत शाश्वत काळमां छग्रस्थ मनुष्य केवल संयमथी, केवल संवरथी ब्रह्मचर्यावासथी अने केवल प्रवचनमाताथी सिद्ध भयो, बुद्ध थयो, अने यावत्- सर्व दुःखनो नाश करनार थयो ! [30] हे गोतम ! १९ शतके ए अर्थ समर्थ नथी [ प्र० ] हे भगवन्! ते ए प्रमाणे शा हेतु कहो छो के, पूर्वोक्तवस्थ मनुष्य यावत् - अंतकर थयो नथी !' [ उ० ] हे गौतम! जे कोइ अंत करे वा अंतिम शरीरवाळाए सर्व दुःखोना नाशने कर्यो, तेओ करे छे के करशे ते बघा उत्पन्नज्ञानदर्शनधर, अरिहंत, जिन अने केवली थइने त्यारपछी सिद्ध, बुद्ध, अने मुक्त थाय छे, परिनिर्वाण पाम्या छे तथा तेओए सर्वदुःखोनो नाश कर्यो छे [तेओ] करे छे अने करशे. माटे हे गौतम! ते हेतुथी एम कधुं छे के यावत्-सर्व दुःखोनो अंत कर्यो, वर्तमानकाळमां पण ए प्रमाणेज जाणं. विशेष ए के, सिद्ध थाय छे, एम कहेतुं तथा भविष्यकाळमां तेवीज रीते जाण. विशेष ए के - 'सिद्ध थशे' एम कहेवं. जेम छद्यस्थ को तेम अधोवधिक पण जाणवो, अने तेना त्रण त्रण आलापक कहेवा. [प्र० ] हे भगवन् ! वीतेला | अनंत सःश्वत काळमां केवली मनुष्ये यावत् सर्वदुःखोनो नाश कर्यो ! [उ०] हे गौतम! हा, ते सिद्ध थया, तेणे सर्व दुःखोनो नाश कर्यो. अहीं पण छद्मस्थानी पेठे त्रण आलापक कहेवा. विशेष ए के, सिद्ध थया, सिद्ध थाय छे, अने सिद्ध थशे; एम कहे. [[प्र०] हे भगवन् ! वीतेला अनंत शाश्वतकाळने विषे, वर्तमान शाश्वत समयमा अने अनंत शाश्वत भविष्यकाळमां जे कोह अंतक रोए, अंतिम शरीरवाळाओए सर्व दुःखोनो नाश कर्यो, करे छे, अने करशेः ते बधा उत्पन्नज्ञानदर्शनधर, अरिहंत, जिन अने केवली यह त्यारपछी सिद्ध थाय छे, यावत् सर्व दुःखोनो नाश करशे ? [अ०] हे गौतम! हा, वीतेला अनंत शाश्वत काळने विषे यावत् - सर्व दुःखोनो नाश करशे. [१०] हे भगवन्! ते उत्पन्नज्ञानदर्शनधर, अरिहंत जिन अने केवली अलमस्तु - पूर्ण कहेवाय ! [उ०] हे
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