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श्याख्यापतिः ॥१३॥
२ शतके उमेशः
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पछी भगवन् गौतम कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिबाजकने पासे आवेला जाणीने, तुरतज आसनबी उमा थइने ते परिवा|जकनी सामे गया. अने ज्यां कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजक हता त्या आल्या. तथा त्या भावीने श्री गौतमे कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजकने आ प्रमाणे कधु के:-हे स्कंदक ! तपने खागत छे, हे स्कंदक तमने सुस्वागत छे, हे स्कंदक! तमने अन्वागत
छे, हे स्कंदक! तमने स्वागत अन्वागत है, अर्थात् हे स्कंदक! पधारो, भले पधार्या, पडी गौतमे ते स्कंदकने आ प्रमाणे कई | केर- हे स्कंदक! श्रावस्ती नगरीमा वैशालिक श्रावक पिंगलक नामना नियंथे तमने आ प्रमाणे आक्षेपपूर्वक पूज्यु हतुं के, हे
मागध ! लोक अंतवालो के के अत विनानो छ ? इत्यादि बधु पूर्वनी पेठे कहे. पावत्-तेना प्रश्नोयी सुसाइ तमो अहीं शीघ्र | आल्या.' हे स्कंदक। कहो, ए वात साची के केम ए वात साची थे, पछी कात्यायनगोत्रीय ते स्कंदक परिबाजके भगवान्
गौतमने आ प्रमाणे कायु के:-हे गौतम ! ए ते एवा, तेवा प्रकारना ज्ञानी अने तपस्वी पुरुष कोण छ, के जेओए मारी गुप्तवात | तमने शीम कही दीधी ! जेथी तमे मारी गुप्त वातने जाणो छो. त्यारपछी भगवान् गौतमे कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजकने
आ प्रमाणे कg:-हे स्कंदक ! मारा धर्मगुरु, धर्मोपदेशक श्रमण भगवंत महावीर उत्पन्न अने ज्ञान दर्शनना धारक छे अहंत , जिन, केवळी छे, भूत, वर्तमान अने भविष्यकाळना जाणनारा . तथा सर्वत्र अने सर्वदर्शी छे, जेणे मने समारी गुप्त बात शीघ्र कही दीधी छे अने हे स्कंदक ! जेथी ९ तेने जाणुं हुं. पछी कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजके भगवान गौतमने आ प्रमाणे का के-॥५॥
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