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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ ७८ ॥
ने उद्देशः ६ का॥७८ ।।
माथे लोकांत आ नीचे लखेला स्थानो साथे जोडवो. अवकाशांतर, वात, घनोदधी, पृथिवी, द्वीप, सागर, वर्ष-क्षेत्र, नेरयिकादिक |जीव, अस्तिकाय, समय, कर्म, लेश्या, दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, संज्ञा, शरीर, योग, उपयोग, द्रव्यप्रदेशो, अने पर्ययो तथा शुं काळ |पहेला छे अने लोकांत (पछी छे) [प्र०] हे भगवन् ! पहेला लोकांत छे अने पछी सर्वाद्वा छे? [उ०] हे रोह ! जेम लोकांत साथै |ए या स्थानो जोडयां, तेम आ संबंधे पण जाणवू, अने र प्रमाणे ए वां स्थानो अलोकांत साथे पण जोडवा. [प्र०) हे
भगवन् ! पहेलो सातमु अवकाशांतर के अने पछी सातमो तनुवात छे ? [उ०] हे रोह ! ए प्रमाणे सातमु अवकाशांतर बधा साथे जोड. अने ए प्रमाणे यावत्-सर्वाद्धा सुधी जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! पहेलो सातमो तनुवात छे अने पछी सातमो धनबात है! [३०] हे रोह! ए पण ते प्रमाणे जाणवू. यावत्-सर्वाद्धा. ए प्रमाणे उपरना एक एकने संयोजतां अने जे हेठलो होय | तेने छोडतां पूर्व प्रमाणे जाणवं, यावत-अतीत अने अनागतकाळ अने पछी सर्वाद्धा, यावत्- हे रोह! एमां कोई जातनो क्रम नथी. हे भगवत् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे के एम कही यावत्-विहरे छे. [प्र०) हे भगवन् एम कहीने भगवंत गौतमे श्रमण भगवंत महावीर मे यावत्-आ प्रमाणे कर्बु-हे भगवन् ! लोकनी स्थिति केटला प्रकारनी कही छ ? | [[३०] हे गौतम! लोकनी स्थिति आठ प्रकारनी कही है. ते आ प्रमाणे:-वायु आकाशना आधारे रहेलो हे. उदधि वाधुना | आधारे रहेलो डे. जमीन उदधिना आधारे रहेला छे. त्रस जीवो अने स्थावर जीवो पृथिवीना आधारे रहेला छे. अजीवो जीवना| आधारे रहेला छे. जीवो कर्मना आधारे रहेला छे. अजीबोने जीवोए संघरेला छे अने जीवोने कर्मोए संघरेला छे. [प्र०) हे भगवन् ! एम कहेवानुं शुं कारण छे ? 'लोकनी स्थिति आठ प्रकारनी कही छै अने यावत्-जीवोने कोए संघरेला छे ? [उ०] हे
प्रमाणे जाणवू, यावना याचा सर्वाद्धा. ए प्रमाणे जपला सातमो तनुवात छे भने पडामाशातर व
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