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व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१२०॥
पावहिणं मजीव गेणं न अण्णउत्थियावं खल "
१ शतके उद्देशः१० ॥१२०॥
IC अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्वंति जाब-एवं खलु एगे जीवे एगेणं समपणं दो किरियाओ पकरेंति, तंजहा-इरियावहियं च संपराइयं च, [ज समयं इरियावहियं पकरेइ तं समयं संपराइयं पकरेइ, जे समयं संपराइयं पकरेइ समयं इरियावहियं पकरेइ, इरियावहियाए पकरणताए संपराइयं पकरेइ, संपराइयपकरणयाप इरियावहियं पकरेइ, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति, तंजहा-इरियावहियं च | संपराइयं च । से कहमेयं भंते एवं ?, गोयमा ! जणं ते अण्णउत्थिया एबमाइक्वंति तं चेव जाव जे ते एव-| |माहंसुमिच्छा ते एवमासु, अहं पुण गोयमा! एबमाइक्खामि ४-एवं खलु एगे जीवे गगसमएण एक किरिये पकरेइ परउत्थियवत्तव्वं यब्वं. ससमयवत्तब्वयाए नेयव्वं जाव इरियावहियं संपराइयं वा ।। (सू. ८२)
प्र०] हे भगयन् ! अन्यतीथिको आ प्रमाणे कई छे के, यावत्- एक जीव एक समये बे क्रियाओ करे . ते.आ प्रमाणे:| अर्यापथिकी अने सांपरायिकी. जे समये अर्यापथिकी किया करे छे ते समये सायरायिकी क्रिया करे छे अने जे समये सांपरायिकी क्रिया करे लेते समये अर्यापथिकी क्रिया करे छे अर्यापथिकी क्रिया करवाथी सांपरायिकी क्रिया करे के अने सांपरायिकी क्रिया करवाथी अर्यापथिकी क्रिया करे छेप प्रमाणे एक जीव एक समये वे क्रिया करे छे एक अर्यापथिकी अने बीजी सांपरायिकी. हे भगवन् ! ए ते ए प्रमाणे केवी रीते होय ! [उ०] हे गौतम! जे ते अन्यतीथिको ए प्रमाणे कहे छे. यावत्-जे तेओए एम का
हे ते खोटुं कई है. वळी हे गौतम ! हुं आ प्रमाणे कई छ के, एक जीव एक समये एक क्रिया कर छे. अहीं परतीर्थिकनुं तथा | स्वसमयनुं वक्तव्य को यावत्-र्यापथिकी अथवा सांपरायिकी क्रिया करे छे ॥ ८२ ॥
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