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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥९७॥
१शतव उमेशः ८ ॥९७॥
| क्रियावाळो अने पांच कियावाळो कहेवाय. [उ.] ज्यांसुधी ते पुरुष ते जाळने धारण करे, अने मृगोने बांधतो नथी, त्या मारतो नथी,
त्यांमुधी ते पुरुष कायिकी, अधिकरणिकी अने प्रादेपिकी ए त्रण क्रियाओथी स्पर्शायलो. वळी ज्यांमुधी ते पुरुष ते जाळने धरी राखे MID अने मृगोने बांधे छ पण मृगोने मारतो नथी त्यांसुधी ते पुरुष कायिकी, अधिकरणिकी, प्राषिकी अने पारितापनिकी ए चार
क्रियाथी स्पर्शाएलो छ, वळी ज्यासुधी ते पुरुष ते जाळने धरी राखे मृगोने बांधे अने मृगोने मारे त्यांसुधी ते पुरुष कायिकी, अधिकरणिकी, | प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी अने प्राणातिपातक्रिया ए पांच क्रियावाळो कहेवाय छे. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी पांच क्रियावाळो कहेवाय
२. ॥६६॥ [प्र०] हे भगवन् ! अनेक वृक्षोवाय वनमा कोइ पुरुष तरणाने भेगां करी तेमा आग मूके. तो ते पुरुष केटली क्रियावालो कहेवाय ? [उ.] हे गौतम! ते पुरुष कदाच त्रण, चार अने पांच क्रियावाळो कहेवाय. [म.] हे भगवन् ! तेनु शु कारण ? [उ.] हे गौतम ! ज्यांसुधी ते पुरुष तरणांने भेगां करे त्यांसुधी त्रण क्रियावालो, अने आग मूके परंतु गाळे नहिं त्यांसुधी चार क्रियावाळो, अने आग की चाळे त्यारे ते कायिकी विगेरे पांच क्रियावाळो कहेवाय माटे हे गौतम ! ते कारणथी पूर्व प्रमाणे का छे ॥ ६७ ॥ [प्र०] हे भगवन् ! हरणोथी आजीविका चलावनार, हरणोनो शिकारी अने हरणोना शिकारमा तलालीन एवो कोइ पुरुष हरणने | मारवा माटे कच्छमांवृक्षोवाळा वनमा जइ 'ए मग छे' एम कही कोइ एक हरणने मारवासारं पाणने फेंके छे, तो ते पुरुष केटली क्रियावाळो कहेवाय ? [उ०] हे गौतम ! ते पुरुप कदाच अण, चार, अने पांच क्रियावालो पण कहेवाय. [प्र०] हे भगवन् ! तेनुं |
कारण ? [10] हे गौतम ! ते पुरुष बाणने फेंके परंतु मृगने बिधे नहि, मारे नहि, त्यांसुधी अण क्रियावालो, अने ते पुरुष वाणने हा फेंके अने मृगने विधे छे पण मारनो नथी त्यांसुधी चार क्रियावालो, वळी वाणने फेंके, विधे अने मृगने मारे त्यांमुधी पांच
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