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१ शतके उद्देशः५
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अने एकाद लोमोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त अने लोभोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त अने एकाद मानोपयुक्त तथा मायोव्याख्या-1
पयुक्त, यभवा घणा क्रोधोपयुक्त तथा एकाद मानोपयुक्त अने घणा मायोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त अने एकाद प्रज्ञप्तिः
मायोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त तथा मायोपयुक्त, ए प्रमाणे क्रोध, मान अने लोभ साथे बीजा पण चार भांगा ॥६२॥
करवा. तथा एज प्रमाणे क्रोध, माया अने लोम साथे पण चार भांगा करवा. पछी मान, माया अने लोभनी साये क्रोधवडे भांगा करवा. तथा ते बघा काधने मूक्या शिवायना ए प्रमाणे सत्तावीश भांगा जाणवा. [३०] हे भगवन्! ए रत्नप्रभा पृथिवीना त्रीस लाख निरयावासोमांना एक एक निरयावासोमां एक समयाधिक जघन्य उमरमां वर्तता नैरयिको शुं क्रोधोपयुक्त ? मानोपयुक्त छ ? मायोपयुक्त के ? के लोभोपयुक्त छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओमा एकाद क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त, अने लोभोपयुक्त होय छे. अथवा घणा क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त मायोपयुक्त, अने लोभोपयुक्त होय छे. अथवा कोई एक क्रोधोपयुक्त अने मानोपयुक्त, अथवा कोइ एक क्रोधोपयुक्त अने घणा मानोपयुक्त, होय छे, इत्यादि ए प्रमाणे एसी भांगा जाणवा. अने ए प्रमाणे यावत्| संख्येय समयाधिक स्थितिवाला नैरयिको माटे पण जाणवू. असंख्येय समयाधिक स्थितिने उचित उत्कृष्ट स्थितिमा सचावीस मांगा कडेवा. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा त्रीशलाख निरयावासोमांना एक एक निरयावासमा बसता नैरयिकोना अवगाहनास्थानो केटलां कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओना अवगाहनास्थानो असंख्येय कयां छे. ते आ प्रमाणे:-ओछामा ओछी
अंगुलना असंख्येय भाग जेटली अवगाहना ते एक प्रदेशाधिक, वे प्रदेशाधिक, ए प्रमाणे यावत्-असंख्येयप्रदेशाधिक जाणवी. दितथा जघन्य अवगाहना अने सेने उचित उत्कृष्ट अवगाहना पण जाणवी. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पथिवीमा त्रीश लाख
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