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ध्याख्याप्रज्ञप्ति ॥३६॥
द्विय
र (उ०) हे गौतम, सम्पष्टि छ तेत्रो मे
ब-
नियमपूर्वक होय छे. ते पांच क्रियाओमा डे-आरंभिकी यावद्-मिथ्यादर्शन प्रत्यया. माटे हे गौतम! ते हेतुथी पूर्व प्रमाणे 5. कबु छ जेम समायु अने समोपपना नैरपिको कहा तेम पृथिवीकायको पण कहेवा जेम पृथिवीकायिको कहा तेम दे इंद्रियो, ते
१ शतके PI इंद्रियो अने यावत्-चउरिद्रियो पण कहेषा. तथा पंचेंद्रिय तियंचयोनिको पण नरयिकोनी पेठे जाणवा. मात्र क्रियाओमा भेद छे.
उद्देशः २ (प्र०) हे भगवन् ! बधा पंचेद्रिय तिर्यच योनिको समान क्रियावाला छे ? (उ०) हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. (प्र०) हे
॥३६॥ भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो? (उ०) हे गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिको त्रण प्रकारना कहा छ, ते आ प्रमाणे सम्यग्दृष्टि, मिथ्यारष्टि अने सम्यग्मिध्यादृष्टि तेमा जेओ सम्यष्टि छ तेत्रो प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे: असंयत अने संयतासंयत तेमां जे संयतासंयत के तेओने त्रण क्रियाओ होय छे. ते आप्रमाणे:-आरंभिकी, पारिग्रहिकी अने मायाप्रत्यया. तथा जे असंयतो छ तेने चार अने मिथ्यादृष्टि तथा सम्यग्दृष्टि के तेओने पांच क्रियाओ होय छे. जेम नरयिको कह्या तेम मनुष्यो कहेवा. तेमां भेद आ के जे मनुष्यो मोटा शरीरवाला छे ते घणा पुद्गलोनो आहार करे छे अने कदाचिन् आहार करे छे. | तथा जे मनुष्यो नाना शरीरवाला छे ते थोडा पुद्गलोनो आहार करे छे अने वारंवारआहार करे छेबाकी बधुं यावद्-वेदना सुधी | नैरयिकोनी पेठे जाणवू. (प्र०) हे भगवन् ! बघा मनुष्यो समान क्रिया वाठा है? (उ०) हे गौतम ! ए अर्थ समर्थ नथी (प्र.)
हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो? (उ०) हे गौतम! मनुष्यो त्रण प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-सम्यग्दृष्टि, | मिथ्याडष्टि अने सम्यगमिथ्यादृष्टि. तेमां जेओ सम्यग्दृष्टि . तेओ त्रण प्रकारना कया छे. ते आ प्रमाणे:-संयत, संयतासंयत अने असंयतः तेमा जे संयत छे ते वे प्रकारना कमा छे-सरागसंयेतः अने वीतरागसंयत. तेमां जे वीतरागसंयत तेओ क्रिया
आरंभिकी, पारिश्राम
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