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वाडी, नवरं उदयार्णतरपच्छाकडं कम्मं निजरेइ, एवं जाव परिकमेइ वा ॥ [सू०३६] व्याख्या- 6 [प्र०] हे भगवन् ! शु जीव पोतानी मेळेज तेने उदीरे ठे? पोतानी मेळेज तेने गहें छे? अने पोतानी मेळेज तेने संवरे छे||१ शतके प्रज्ञप्तिः [उ०] हे गौतम ! हा, पोतानी मेळेज पूर्व प्रमाणे करे छे [म०] हे भगवन् ! जे ते पोतानी मेळेज उदीरे छे, गहें छे अने संवरे छे | उद्देशः३ ॥४९॥ ते उदीर्णने उदीरे छे? अनुदीर्णने उदीरे छे ? अनुदीर्ण तथा उदीरणाने योग्यने उदीरे छे ? के उदयानंतर पश्चात्कृत कर्म उदीरे
X ॥४९॥ दछे? [उ०] हे गौतम ! उदीर्णने उदीरतो नथी तथा उदयानंतर पश्चात्कृत कर्मने उदीरतो नथी पण अनुदीर्ण अने उदीरणाने योग्य
कर्मने उदीरे छे. [प्र०] हे भगवन् ! जे ते अनुदीर्ण तथा उदीरणाने योग्य कर्मने उदीरे छे ते शुं उत्थानथी, कर्मथी बलथी, वीर्यथी। ४ा अने पुरुषाकार पराक्रमी उदीरें के ? के अनुत्थानथी, अकर्मथी, अबलथी, अवीयथी अने अपुरुषाकार पराक्रमथी उदीरे छे ? [उ०] | हे गौतम ! ते अनुदीर्ग अने उदीरणाने योग्य कर्मने उत्थानथी, कर्मथी, बलथी, अवीर्यथी अने अपुरुषाकार पराक्रमथी उदीरतो नथी अने ज्यारे तेम छे त्यारे उत्थान छे, कर्म, बल, वीर्य अने पुरुषाकारपराक्रम पण छे. [40] हे भगवन् ! ते पोतानी मेळेज उपशमावे, गहें अने संकरे ? [उ.] हे गौतम ! हा, अहीं पण तेमज कहे. विशष एके, अनुदीर्णने उपशमावे, बाकी त्रणे विकल्पो| नो निषेध करवो. [प्र०] हे भगवन् ! जे ते अनुदीर्णने उपशमावे ते शु उत्थानथी, यावत्-पुरुषाकारपराक्रमथी? के अनुत्थानथी, यावत्-अपुरुषाकारपराक्रमथी ? [उ०] हे गौतम ! पूर्व प्रमाणेज जाणवू. [म०] हे भगवन् ! ते पोतानी मेळेज वेदे अने गर्हे ? हे गौतम ! अहीं पण वधी पूर्वोक्त परिपाटी जाणवी. विशेष एके, उदीर्णने वेदे छे पण अनुदीर्णने वेदतो नथी, तथा ए प्रमाणे यावत्पुरुषाकार पराक्रमथी वेदे ॥३६॥
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