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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ चमरेन्द्र की ऋद्धि
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बहूणं चमरचंचारायहाणिवत्थव्वाणं देवाणं य देवीणं य आहेवच्चं, पोरेवच्चं, सामित्तं, भट्टित्तं, आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयणट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-तालतुडियघण-मुइंग पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे।"
___ अर्थ-चार लोकपाल, परिवार सहित पांच अग्रमहिषियाँ (पट्टरानियाँ) तीन परिषद् (सभा) सात सेना, सात सेनाधिपति, दो लाख छप्पन हजार (२,५६०००) आत्मरक्षक देव, इन सब पर अधिपतिपना, पुरपतिपना, स्वामीपना, भर्तृपना (पालकपना) आज्ञा की प्रधानता से सेनाधिपतिपना करवाता हुआ, पलवाता हुआ, बड़ी आवाज पूर्वक निरन्तर होते हुए नाटक, गीत और वादिन्त्रों के शब्दों से, वीणा, झालर, कांस्य आदि अनेक प्रकार के वाद्यों के शब्दों से तथा चतुर पुरुषों द्वारा बजाये जाते हुए मेघ के समान गम्भीर मृदंग के शब्दों से दिव्य भोगों (भोगने योग्य शब्दादि) को भोगता हुआ इन्द्र + विचरता है।
___ वह चमरेन्द्र वैक्रियकृत बहुत-से असुरकुमार देव और देवियों द्वारा इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को ठसाठस भर देता है । 'किस प्रकार ठसाठस भरता है'-इसके लिए शास्त्रकार ने दो दृष्टांत दिये हैं
“से जहा णामए जुवई जुवाणे हत्थेणे हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा णाभी अरगा+ देवों के दस भेद होते हैं । यथा(१) इन्द्र-सामानिक आदि सभी प्रकार के देवों का स्वामी 'इन्द्र' कहलाता है ।
(२) सामानिक-आयु आदि में जो इन्द्र के बराबर होते हैं, उन्हें 'सामानिक' देव कहते है। केवल इन में इन्द्रत्व नहीं होता है। शेष सभी बातों में ये इन्द्र के समान होते हैं। ..
(३) त्रायस्त्रिंश-जो देव, मन्त्री और पुरोहित का काम करते हैं, वे श्रायस्त्रिंश कहलाते है। (४) पारिषद्य-जो देव, इन्द्र के मित्र सरीखे होते हैं, वे पारिषद्य कहलाते हैं।
(५) आत्मरक्षक-जो देव, शस्त्र लेकर इन्द्र के चौतरफ खड़े रहते हैं, वे 'आत्मरक्षक' कहलाते हैं । यद्यपि इन्द्र को किसी प्रकार की तकलीफ या अनिष्ट होने की सम्भावना नहीं है, तथापि आत्मरक्षक देव अपना कर्त्तव्य पालन करने के लिए हर समय हाथ में शस्त्र लेकर खड़े रहते हैं। .... (६) लोकपाल-सीमा की रक्षा करने वाले देव, लोकपाल कहलाते हैं।
' (७.) अनीक-जो देव, सैनिक का काम करते है, वे 'अनीक' कहलाते है और जो सेनापति का काम करते हैं, वे 'अनीकाधिपति' कहलाते हैं।
(८) प्रकीर्णक-जो देव, नगर निवासी अथवा साधारण जनता की तरह रहते है, वे 'प्रकीर्णक' कहलाते हैं।
(९) आभियोगिक-जो देव, दास के समान होते हैं, वे 'आभियोगिक' (सेवक) कहलाते है। (१०) फिल्विषिक---अन्त्यज (चाण्डाल) के समान जो देव होते हैं, वे 'किल्विषिक' कहलाते हैं।
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