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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ चमरेन्द्र की ऋद्धि
कर परिषद् वापिस चली गई। . ३ प्रश्न-उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के दूसरे अन्तेवासी अग्निभूति अनगार, जिनका गौतम गोत्र है, सात हाथ ऊँचा शरीर है, यावत् पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले
हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर कितनी बडी ऋद्धिवाला है ? कितनी बडी कान्तिवाला है ? कितना बलशाली है ? कितनी बडी कीर्ति वाला है ? कितने महान् सुखों वाला है ? कितने महान् प्रभाव वाला है ? वह कितनी विकुर्वणा कर सकता है ?
३ उत्तर-हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर महाऋद्धि वाला है यावत् महाप्रभाव वाला है । चौतीस लाख भवनावास, चौसठ हजार सामानिक देव और तेंतीस त्रायस्त्रिंशक, इन सब पर वह अधिपतिपना (सत्ताधीशपना) करता हुआ विचरता है। अर्थात् वह चमर ऐसी मोटी ऋद्धि वाला है यावत् ऐसा महाप्रभाव वाला है । उसके वैक्रिय करने की शक्ति इस प्रकार है-हे गौतम ! विकुर्वणा करने के लिए असुरेन्द्र असुरराज चमर, वैक्रिय समुद्घात द्वारा समवहत होता है, समवहत होकर संख्यात योजन का लम्बा दण्ड निकालता है। उसके द्वारा रत्नों के यावत् रिष्टरत्नों के पुद्गल ग्रहण किये जाते है उनमें से स्थल पुद्गलों को झटक देता है (गिरा देता है-झड़का देता है) तथा सूक्ष्म पुद्गलों को ग्रहण करता है । दूसरी बार फिर वैक्रिय समुद्घात द्वारा समवहत होता है। समवहत होकर हे गौतम ! जैसे कोई युवा पुरुष, युवती स्त्री के हाथ को दृढ़ता के साथ पकड़ कर चलता है, तो वे दोनों संलग्न मालूम होते है अथवा जैसे गाडी के पहिये की धुरी में आरा संलग्न सुसंबद्ध एवं आयुक्त होते हैं। इसी प्रकार असुरेन्द्र असुरराज चमर, बहुत असुरकुमार देवों द्वारा तथा असुरकुमार देवियों द्वारा इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को आकीर्ण कर सकता है एवं व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पष्ट और गाढ़ावगाढ़ कर सकता है अर्थात् ठसाठस भर सकता है।
फिर हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर . बहुत असुरकुमार देवों और
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