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[ अष्टपाहुड
जूठ, चोरी और परस्त्रीका त्याग आया, अन्य व्यसनोंके त्याग में अन्याय, परधन, परस्त्रीका ग्रहण नहीं है; इसमें अतिलोभ के त्याग से परिग्रह का घटना आया। इसप्रकार पाँच अणुव्रत आते । इनके [ व्रतादि प्रतिमाके] अतिचार नहीं टलते इसलिये अणुव्रती नाम प्राप्त नहीं करता [फिर भी ] इसप्रकार से दर्शन प्रतिमा धारक भी अणुव्रती है इसलिये देशविरत सागारसंयमाचरण चारित्र में इसको भी गिना है ।। २३ ।।
आगे पाँ अणुव्रतोंका स्वरूप कहते हैं:
थूले तसकायवहे थूले मोषे अदत्तथूलें य परिहारो परमहिला परिग्गहारंभपरिमाणं ।। २४ ।।
स्थूले त्रसकायवधे स्थूलायां मृणायां अदत्तस्थूले च । परिहारः परमहिलायां परिग्रहारंभपरिमाणम् ।। २४ ।।
अर्थ:- -थूल सकायका घात, थूल मृषा अर्थात् असत्य, थूल अदत्ता अर्थात् परका बिना दिया धन, पर महिला अर्थात् परस्त्री इनका तो परिहार अर्थात् त्याग और परिग्रह तथा आरम्भका परिणाम इसप्रकार पाँच अणुव्रत हैं।
भावार्थ:--यहाँ थूल कहने का ऐसा जानना कि - जिसमें अपना मरण हो, परका मरण हो, अपना घर बिगड़े पर का घर बिगड़े, राजा के दण्ड योग्य हो, पंचोंके दण्ड योग्य हो इसप्रकार मोटे अन्यायरूप पापकार्य जानने। इसप्रकार स्थूल पाप राजादिकके भयसे न करे वह व्रत नहीं है, इनको तीव्र कषायके निमित्तसे तीव्र कर्मबंध के निमित्त जानकर स्वयमेव न करने के भावरूप त्याग हो वह व्रत है। इसके ग्यारह स्थानक कहे, इनमें ऊपर-ऊपर त्याग बढ़ता जाता है सो इसकी उत्कृष्टता तक ऐसा है कि जिन कार्योंमें त्रस जीवोंको बाधा हो इसप्रकार के सब ही कार्य छूट जाते हैं इसलिये सामान्य ऐसा नाम कहा है कि त्रसहिंसाका त्यागी देशव्रती होता है। इसका विशेष कथन अन्य ग्रन्थोंसे जानना ।। २४ ।।
१ - 'अदत्तथूले के स्थान में सं० छायामें तितिक्ख थूले' 'परमहिला' के स्थान में 'परमपिम्मे ऐसा पाठ है।
त्यां स्थूल त्रसहिंसा-असत्य - अत्तना, परनारीना परिहारने, आरंभपरिग्रहमानने अणुव्रत कह्यां । २४ ।
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